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सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

वफ़ा

Wafa in Hindi

वफ़ा क्या होती है ? क्या हम इसे भली -भाँति  समझते हैं ? दूसरों का ख्याल रखना ,बात को मानना या फिर  प्रेम को जाहिर करना, क्या इसी को वफ़ा कहतें हैं ?  कुछ लोग सामने वाले की नाराजगी और  घृणा को सह कर भी अपनी वफ़ा को प्रदर्शित करते हैं। मगर मैं नहीं मानती ऐसे वफ़ा को। क्योंकि हम  इंसान हैं। हमें  हक़ है अपने बारे में सोचने का। हमारे पास ईश्वर की कृपा से मस्तिष्क रूपी यन्त्र है, जिसके द्वारा  हमें सही और गलत के फर्क का ज्ञान होता है। 

मगर वो बेजुबान, जिनको ईश्वर ने जुबान भी नहीं दिया और जो अपनी भावनाओं को कह कर व्यक्त भी नहीं कर सकतें  हैं , उनके बारे में हमनें क्या कभी सोचा है ? हमने अक़्सर फल मंडी,सब्जी मंडी,  बाजारों में जानवरों को फलों -सब्जियों में मुँह लगाने  पर मार खाते देखा होगा। दुकानदारों के हाथों में जो कुछ भी आता है, वो उसी से मारने  लगतें हैं - कभी -कभी जानवरों के  पैर टूट जातें हैं ,और चोट खाने से उनकी त्वचा तक फट जाया करती है। वो  कुछ कर नहीं पाते। 

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

खरा सोना

Khara Sona in Hindi

आज कल  एकल परिवार की ही प्रथा हर कही देखनें को मिल रही  है। कोई भी संयुक्त परिवार में  रहना नहीं चाहता। जब हम कभी  परेशानियों में होते है और हमें किसी की राय की जरूरत  महसूस होती  है तो हमें लगता है कि हमारे सिर पर बड़े बुजुर्गों का हाथ नहीं है। उनके जीवन के अनुभवों से हमारी जिंदगी कितनी आसान हो जाया  करती थी । एकल  परिवार के बच्चों में वो संस्कार ,सदस्यों से भावात्मक जुड़ाव कहाँ  देखने को मिलते है ? वो कहानियां, जो बच्चों के बौद्धिक विकास में सहायक होती थी, जिनके द्वारा वो ना जाने कितने ज्ञान बिना किताबों के हासिल  लेते थे, आज गायब सी हो गयी हैं ।  बच्चों के हाथ में आज केवल टी.वी का रिमोट होता है, जिससे  वो सिर्फ कार्टून देखते हैं या वीडियो गेम्स खेलते हैं। आइये, आज शहर में रहने वाले एकल परिवार की जिंदगी के बारे में जानते हैं। 

अलार्म की आवाज से सुधा की नींद टूटी उसने देखा सुबह के 8 :00 बज गएँ हैं, वह  घबरा कर कमरे से बाथरूम की तरफ भागी फिर उसने बच्चों को जगा कर तैयार किया।  सुधा ने अपने पति रवि को भी जगाया। तब तक काफी समय हो गया था। सुधा ने रवि से कहा ,"बच्चों को   रास्ते में कुछ खिला देना और तुम भी कुछ खा लेना। मैं कुछ बना नहीं सकी। मैं ऑफिस जा  रही हूँ। " फिर सभी अपनी-अपनी मंजिल पर निकल गए। 

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

सच्ची खुशी

Sachchi Khushi in Hindi

कल से  मेरा मन बहुत उदास था। वजह  तो नहीं जानती, मगर कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। बस मन में यही बात थी कि  कोई मुझसे बात न करे और  मैं चुप-चाप बस सोचती ही रहूँ।  परेशानी सिर्फ मुझे ही नहीं, मेरे जैसे ना जाने कितने लोगों को  है।  छोटी -छोटी बातों   को दिल पर  ले कर न जाने कितने समय तक हम सभी  परेशान रहतें हैं ,उससे बाहर ही नहीं आ पाते। आखिर  हमारे इन दुखों की वजह क्या है  ? मैं मानती हूँ कि कुछ बातें ऐसी होती है, जो हमारे मन में घर कर जाती है, जिनको भूलना आसान नहीं होता।  मगर क्या हमनें कभी  सोचा है कि उन मुश्किलों का हम खुद ही ऐसा जाल बुन लेते हैं कि जिससे बाहर नहीं निकल पाते। आखिर हम खुश क्यों नहीं हैं ? हमारे दुख की वजह क्या है ?

धीरज नाम का युवक एक ऐसी ही परेशानी का हल ढूढ़ने एक बाबाजी के पास गया। बाबा जी सभी तरह की परेशानियों का समाधान करते थे। धीरज  ने भी दुखों की लम्बी -चौड़ी  लिस्ट  बाबा जी  के सामने रख दी, जिसका वो समाधान चाहता था। बाबाजी ने धीरज  कहा," बेटा ! अभी घर जाओ कल आना और अपने साथ एक बड़ा पत्थर  ले आना।" अगले दिन धीरज घर से एक बड़ा पत्थर  ले आया और उसने उसे बाबा जी के सामने  रख दिया। फिर बाबाजी ने  धीरज को उस पत्थर को हाथ में उठाने के लिए कहा। फिर बोले नीचे रख दो। एक बार फिर सिर  पर रखने को बोले । फिर वापस नीचे रखवा दिया। थोड़ी देर बाद जाने लगे और धीरज से पत्थर को सिर  पर रख कर अपने पीछे आने को कहा।धीरज ने वैसा ही किया।