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शनिवार, 16 जनवरी 2021

लॉकडाउन

 

LOCKDOWN IN HINDI


आज मैं लाॅक-डाउन के बारे में आप सभी से अपनी कुछ बातें शेयर करना चाहती हूँ , वैसे तो कहने को दो शब्द ही हैं, पर इस छोटेे से दो शब्दों ने हमारी पूरी जिन्दगी को हिलाकर रख दिया और हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम सभी अपने परिवार की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं, उनकी भावनाओं को नजर-अंदाज कर रहे हैं। 


इस लाॅक-डाउन को हम सभी नें पूरे दिल से स्वीकारा व हमारे देश में इस महामारी को रोकने में, जहाँ तक हो सका, हम सभी का प्रयास सराहनीय रहा। पर इस कोरोना काल ने हमें एक शिक्षा जरुर दी- अपने और परायों की, जो हमारे अपने थे, उन्होंने अपने साथ-साथ हमारे जीवन का भी ख्याल रखा। सामाजिक दूरी बना कर कुछ अनुभव कड़वे रहे और कुछ अनुभव मीठे। जाने-अनजाने उन पति देवों को सबक मिला, जो महीने में एक बार घुमाने का प्रोग्राम बना कर कैंसिल कर देते और कहते कि घर में रहो, क्या परेशानी है ? उनको हम महिलाओं का दर्द पता चला कि हम कैसे 24 घंटे बिना सैलरी के काम करते हैं और होठों पर मुस्कान लाते हैं। 


वो बुजुर्ग माता-पिता जिनको अपने बच्चों के साथ एक पल भी सुकून से चाय पीने का मौका नहीं मिलता था, वो सारे ख्वाब कोरोना-देव ने पूरा कर दिया। वो जिनको अपने घर आने का वक्त नहीं था, वो अपने घर आने को तरसे और उनको यह बात अच्छी तरह से समझ में आई कि घर तो घर ही होता है- ऐसा सुकून और सुरक्षा, और कहाँ !

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मंथन

MANTHAN IN HINDI

 

आज कितने दिनों के बाद फिर से मेरी इस डिजिटल की-बोर्ड रूपी कलम ने मुझे पुकारा और कहा कि क्या तुम मुझे भूल गई ? मैं तुम्हारी पुरानी दोस्त, जो तुम्हारे हर खट्टी-मीठी यादों की साझीदार, मुझे आज फिर से अपने हाथों में थामों, मुझे फिर से अपने छुअन से जीवन्त होने का एहसास कराओ। 


बस फिर क्या था ! मैंने उतारा अपनी परेशानियों और फिक्र का थैला और फिर से अपनी कलम से कर ली दोस्ती और इस ब्लाग के माध्यम से आप सबके सामने अपनी लेखनी के साथ पुनः प्रस्तुत हो गयी। 


सच में, मैं अपने एहसास के माध्यम से यह बात बताना चाहती हूँ , जब भी हम परेशान होते हैं, हमें कुछ भी समझ में नहीं आता है और मन में कैसे-कैसे अच्छे-बुरे ख्याल हमें घेर लेते हैं, उस समय हमें एक अच्छे दोस्त की आवश्यकता होती है, जो हमें सुने, जिससे हम अपनी बातें कह कर अपना मन हलका कर सके। पर सभी इतने खुशनसीब नहीं होते कि ऐसा शख्स उनके पास हो, जिनसे वो अपना दुःख-दर्द मिल बाँट कर अपना मन हल्का कर सके। तो ऐसे में हमें खुद को अपना दोस्त बना लेना चाहिए। 


मंगलवार, 21 मार्च 2017

मजा नहीं आया !

Maja Nahi Aaya in Hindi

आज मैं अपने बचपन से जुड़ी एक घटना आप सभी के साथ शेयर करना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी तक एक संदेश पहुँचे, आपके मनोमस्तिष्क पर एक दस्तक हो, आप भी एक बार साहस करें और कहें कि मजा नहीं आया !

जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी, परीक्षा के बाद मेरी छुट्टियाँ हो जाती थी और इन छुट्टियों में मेरी बहन अपनी 3 साल की बेटी के साथ घर पर आ जाया करती थी। दीदी की बेटी रिया मुझे बहुत प्यारी थी और मैं भी उसकी लाडली मासी थी। वह रात को मेरे पास सोती थी, मुझसे कहानी सुनती थी और सो जाती थी। मैं भी उसे हर रोज कहानी सुनाया करती थी - कभी भालू की, कभी हिरन की, कभी शेर की और ना जाने क्या -क्या ! इसी तरह वह हमेशा कहानी सुनते -सुनते सो जाती थी। मुझे भी यह कार्य करके बहुत आनन्द आता था। मैं हर रात उसी कहानी को सुनाती और वह बच्ची सो  जाती। हर रात यही सिलसिला चलता था।