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गुरुवार, 11 मार्च 2021

सोमवार, 1 मार्च 2021

अंतर्मुखी

ANTARMUKHI IN HINDI


इस बात को हम सभी जानते हैं कि हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। हमे आँख, नाक, मुख, हाथ-पैर और जुबान तो जन्म से मिल जाते है, बस उनके विकास और अनुपात में वृद्धि होती है। पर एक ऐसी चीज जो इस दुनिया में अनमोल है, जो हमें ईश्वर के द्वारा नहीं बल्कि अपने चित्त और विवेक से प्राप्त होती है - वो है हमारा स्वभाव,  हमारा सभी के साथ पेश आने का तरीका, जिससे उस व्यक्ति की पहचान, नाम से कहीं ज्यादा उसके बर्ताव से दूसरे व्यक्ति के मन मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़ जाते हैं। जिसे हम 'सुव्यवहार' भी कह सकते हैं।


ऐसा वास्तविक में है और हम सभी ने देखा होगा कि किसी-किसी का स्वभाव होता है कि कुछ लोग अपने मन की बात को किसी के साथ सहजता से शेयर कर देते हैं और कुछ लोग ऐसे व्यवहार के भी होते हैं जो अपने भीतर अथाह बातों को सँजोकर रखते चले जाते हैं। जैसे मन ना हुआ स्टोर-रूम हो गया, जहाँ हम अपने पुराने सामानों को सहेज देते हैं। ऐसे व्यक्ति 'अंतर्मुखी' होते हैं, उनके भीतर की झिझक उनको किसी के सामने अपने दिल की बात रखने ही नहीं देती। उनके दिल में इतना डर समाया रहता है जिसकी वजह से वह अपने मन की बातें किसी से शेयर करना ही नहीं चाहते हैं। पर यहाँ मैं आप सभी से ये कहना चाहती हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति को यह बात समझना बहुत आवश्यक हैं कि अपने व्यवहार में सन्तुलन रखना हमारे ही वश में होता है। हमें ना तो अधिक 'अंतर्मुखी' होना चाहिए और ना ही बहुत अधिक 'बहिर्मुखी'।

शनिवार, 16 जनवरी 2021

लॉकडाउन

 

LOCKDOWN IN HINDI


आज मैं लाॅक-डाउन के बारे में आप सभी से अपनी कुछ बातें शेयर करना चाहती हूँ , वैसे तो कहने को दो शब्द ही हैं, पर इस छोटेे से दो शब्दों ने हमारी पूरी जिन्दगी को हिलाकर रख दिया और हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम सभी अपने परिवार की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं, उनकी भावनाओं को नजर-अंदाज कर रहे हैं। 


इस लाॅक-डाउन को हम सभी नें पूरे दिल से स्वीकारा व हमारे देश में इस महामारी को रोकने में, जहाँ तक हो सका, हम सभी का प्रयास सराहनीय रहा। पर इस कोरोना काल ने हमें एक शिक्षा जरुर दी- अपने और परायों की, जो हमारे अपने थे, उन्होंने अपने साथ-साथ हमारे जीवन का भी ख्याल रखा। सामाजिक दूरी बना कर कुछ अनुभव कड़वे रहे और कुछ अनुभव मीठे। जाने-अनजाने उन पति देवों को सबक मिला, जो महीने में एक बार घुमाने का प्रोग्राम बना कर कैंसिल कर देते और कहते कि घर में रहो, क्या परेशानी है ? उनको हम महिलाओं का दर्द पता चला कि हम कैसे 24 घंटे बिना सैलरी के काम करते हैं और होठों पर मुस्कान लाते हैं। 


वो बुजुर्ग माता-पिता जिनको अपने बच्चों के साथ एक पल भी सुकून से चाय पीने का मौका नहीं मिलता था, वो सारे ख्वाब कोरोना-देव ने पूरा कर दिया। वो जिनको अपने घर आने का वक्त नहीं था, वो अपने घर आने को तरसे और उनको यह बात अच्छी तरह से समझ में आई कि घर तो घर ही होता है- ऐसा सुकून और सुरक्षा, और कहाँ !