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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

सुख और दुःख

 

SUKH AUR DUKH IN HINDI - EK NAI DISHA 2022

सुख और दुःख जीवन के महत्वपूर्ण पहलू है। जब बच्चा  जन्म लेता  है , तो  माँ  को जाने कितने कष्टों का सामना करना पड़ता है और उसके आँख खोलते ही सारे दुःख ख़ुशी में परिवर्तित हो जाते है। संसार में  जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति इस सुख -दुःख के चक्कर से बच नहीं सका है। जब कभी हम दुखी होते हैंतो हम बहुत अधिक निराश हो जातें हैं। हमें लगता है कि ये समय कब बीतेगा ,कैसे बीतेगा। 

 

और जब हम खुशियों के दिनों को एन्जॉय करते है तो हम अपने उन दिनों का स्मरण भी नहीं करना चाहते है। मगर ये सुख -दुःख हमारे जीवन की परछाईयाँ है, जिनसे हम कभी भाग नहीं सकते और जब हम जीवन में आये मुश्किलो से घिर जाते है तो तभी हमें अपने और परायों की परख होती है। क्योकि जो लोग हमारे अच्छे दिनों के  साथी होते है उनमें से  ही कुछ लोग ऐसे भी होते हैंजो परेशानियों में  हमसे  सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेते हैं। 

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

बुरा न मानो, होली है

बुरा न मानो, होली है - एक नई दिशा

 ' नई दिशाकी ओर से आप सभी को रंगों के पर्व 'होली२०२२ की हार्दिक शुभकामनाएँ !

#होली
#ek_nai_disha
Happy Holi

Image:Google

सोमवार, 14 मार्च 2022

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय

 

NINDAK NIYARE RAKHIYE- KABIR DAS - EK NAI DISHA


"निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय"

कबीरदास जी की ये पंक्ति हम सभी ने अपने बचपन में पढ़ी जरूर होगी। पर इसपर शायद ही किसी ने गहराई से विचार किया होगा या इसपर अमल करने के बारे में सोचा होगा।

मेरी बुद्धि में ये मोटी-मोटी बातें तो घुसती ही नहीं थीं। इसमें शायद बचपन का असर था। पर आज जब मैं इन पंक्तियों के विषय में सोंचती हूँ तो मन में एक ही बात उभर कर आती है कि इतना ज्ञान आखिर उनलोगों ने कहाँ से पाया होगा, जो बातें उन्होंने अपनी कुटिया में व्यक्त की, वह संसार जगत में यथार्थ रूप में घटित हो रहीं हैं, जैसे कि वो सभी कुछ भविष्य देख कर लिख गये हों।

कबीर दास जी ने कहा है कि अपनी निन्दा करने वालों को सदैव अपने आस-पास रखना चाहिये। सच्ची बात है यह, क्योंकि यदि हमें अपने भीतर के छुपे गुणों को पहचानना है तो निन्दा करने वालों के सम्पर्क में रहने से ही ये सम्भव हो सकता है, क्योंकि गुणों की पहचान तभी होती है, जब हम अपने भीतर अवगुणों पर विजय प्राप्त कर लें।

ऐसा हम सभी के साथ होता है, जब हमें कोई अच्छी बात कहता है तो हमें अच्छा लगता है और यदि अन्य व्यक्ति हमें जरा भी पसन्द न आने वाली बात कहता है तो हम उससे किनारा कर लेते हैं और उससे दूरी बनाकर रखना चाहते हैं पर यह सही नहीं हैै। कभी-कभी हमें प्रसंशा करने वालों के साथ-साथ कुछ ऐसे अपनों की भी आवश्यकता होती है, जो हमारे भीतर छिपे अवगुणों से भी हमें परिचित कराये, ताकि हम उसे दूर कर सकें।

यदि हमें अपने-आप से और अपने गुणों से परिचित होना है, तो अवहेलना करने वालों की बातों से घबराना बन्द करना होगा। हमारी प्रसंशा करने वाले दोस्त हमें मिलते ही रहेंगे। पर जो हमारे भीतर के छिपे हुए अवगुणों से जो परिचित कराये, उन्हें भी मित्र बनाना हमारे हित के लिए होता है। 

हम सभी के भीतर गुणों की भरमार छिपी हुई होती है, जिनकी पहचान कराने में हमारे मित्र या हमारा भला चाहने वाले सहायक होते हैं। हम अपने अवगुणों को अनदेखा कर सकते हैं। पर हमारे अवगुणों की पहचान कराने वाले भी हमारी मित्र की श्रेणी में आते हैं। 

हम मानव हैं, ईश्वर ने हमें मानव-जीवन प्रदान किया है, जिसकी वजह से हम सभी में अहंकार की भावना भी समय के साथ आ गयी है।

कभी-कभी अपने गुणों पर हमें स्वयं भी अहंकार हो जाता है। हमें यह गलत एहसास हो जाता है कि हम सबसे बेस्ट हैं। सब समझने लगते हैं कि हमसे अच्छा कोई भी नहीं है, वगैरा-वगैरा।
पर यदि हमें अपने-आप को इस अहंकार की कु-मनोवृत्ति से अपने सुन्दर मन को बचाना है तो हमें अपने भीतर गुणों के साथ-साथ अवगुणों को भी स्वीकार करना होगा, उसका सामना करना सीखना होगा। 

क्योंकि कहते हैं ना, जब हम अस्वस्थ्य होते हैं तो हमें कढ़वी दवा पीनी पड़ती है और ये दवायें अपना असर दिखा कर धीरे-धीरे हमें फिर से स्वस्थ्य कर देती हैं। उसी प्रकार से अपनी सन्तान को भी सभी कढ़वे अनुभवों का सामना करने देना चाहिए, ताकि धीरे-धीरे वो भी इस जीवन के वास्तविक रूप से परिचित हो सके और जीवन का मूल्य समझ सके ।

वो एक सशक्त वृक्ष के समान अपना स्थान बनाये, जिसके अस्तित्व में दूसरे ठण्डी छाँव का अनुभव करें व किसी के काम आ सके।

Image:Google