क्या होती है आराधना ? इससे तो हम सभी परिचित होंगे। सभी के दिल में अपने आराध्य के प्रति सम्मान व प्रेम होता है ,जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है। हम ऐसी शक्तियों को पूजते हैं, जो हमें जीवन जीने की शक्ति प्रदान करते हैं, जो हमें हर मुश्किलों से लड़ने की शक्ति देते हैं और जो हमारे हृदय में प्रेम रुपी पुष्प की बगिया को सींचने में हमारी मदद करते हैं। हम सभी के दिल में अपने आराध्य की प्रतिमूर्ति विद्यमान रहती है, जिसे सभी अलग -अलग रूपों में पूजते हैं। मैं भी पूजती हूँ, आप भी पूजते होंगे। और इस आराधना से हमने अपने भीतर एक शक्ति का संचार होते हुए भी महसूस किया होगा ।
पर यदि हमारी आराधना हमें थका दे ! हमें भीतर तक तोड़ कर रख दे ! तो क्या ऐसी आराधना उचित है ? यदि हमें आराधना के बदले धिक्कार मिले ! आराध्य हमें अप्रिय समझे ! हमारी तपस्या का प्रतिफल हमें दुख और आंसू से मिले ! तो क्या हम अपनी आराधना निःस्वार्थ भाव से कर सकेंगे ? आज मैं आपको एक ऐसी आराधिका से मिलवाती हूँ।