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बुधवार, 23 जून 2021

अभिलाषा

 

अभिलाषा


सच कितना सुन्दर है यह हमारी अभिलाषा पर निर्भर करता है। पर कभी-कभी इसके परिणाम बहुत कष्टकारी हो सकते हैं। क्या हमनें कभी अपने चाहतों पर लगाम लगाई है ? शायद नहीं। दूसरों के अच्छे कपड़े देखे तो बढ़-चढ़ कर खरीदारी की। बड़ी गाड़ी देखी तो उसे पास होने की चाहत की। कोई नया मोबाइल देखा तो उसे पाने की चाहत की। और न जाने क्या-क्या ? 


ये चाहत रुपी राक्षस हमारे मन और दिलो-दिमाग पर इस प्रकार वार करता है कि हमें खुद भी समझ में नहीं आता कि हम न चाहते हुए भी कई बार शापिंग-माॅल से ऐसी कई चीजों को घर पर उठा लाते हैं, जिसकी ना तो हमें आवश्यकता होती है और ना ही जिन्दगी में जरुरत।


इसी ‘अनचाही अभिलाषा’ पर आप सभी के सामने प्रस्तुत है, एक छोटी सी स्टोरी, जो इसकी निरर्थकता को व्यक्त करती है।

शनिवार, 12 जून 2021

प्रतिबिम्ब

प्रतिबिम्ब


रावी आज सुबह से ही अपने खिड़की पर खड़ी होकर बाहर देख रही थी। आज उसे बाहर का मौसम बहुत ही सुहाना लग रहा था। तभी किसी ने उसे पुकारा, ‘‘रावी ! क्या बात है मैडम, कब तक इस मौसम का अकेले-अकेले लुफ्त उठाईयेगा ?’’ अचानक उसकी तन्द्रा टूटी। उसने पीछे देखा । ये कोई और नहीं बल्कि उसका पति विजय था। रावी को धीरे से विजय ने पकड़कर कुर्सी पर बिठाया और प्यार से थोड़ी डाँट लगाई, ‘‘डाॅक्टर ने आपको चलने-फिरने व बहुत देर तक खड़े रहने को मना किया है। आप को जो कुछ चाहिए, बस फरमाइये, बंदा आपकी खिदमत में लेकर हाजिर हो जायेगा।’’ 


विजय की ऐसी बातों से रावी के होठों पर मुस्कुराहत आ गई। विजय ने सूप के बाउल को हाथों से उठाया और रावी को एक चम्मच सूप पिलाना चाहा । रावी की आँखों में आँसू आ गये। आखिर क्या वजह थी कि रावी के इन आँसुओं की ?

 आइये पीछे की कहानी जानते हैं।


रावी बचपन से ही बेहद खुशमिजाज व खुबसूरत दिखती थी। उसने अपनी माँ की तरह हर चीज को सुव्यवस्थित रखना सीखा था। उसे वो हर चीज जो खूबसूरत व अच्छा दिखती थी, बहुत पसन्द आती थी। किसी भी चीज में जरा सी खामियों से वह चिढ़ सी जाती थी। यहाँ तक कि उसके कितने ही प्रिय खिलौने ही क्यों न हों,  जरा सा दाग या धूल लगने पर वह उसे फेंक दिया करती थी। रावी के माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे। जो भी चीज उसे पसन्द आती थी वे उसे वह चीज लाकर दे देते। 




रावी दिन-प्रतिदिन बड़ी होती गई और वह पहले से भी ज्यादा खुबसूरत और स्मार्ट दिखने लगी थी। उसने सभी दोस्त ऐसे बनाये थे, जो दिखने में उसके रंग-रूप व पहनावे के अनुरूप थे। रावी अब विवाह के योग्य हो गयी थी। एक से एक बड़े घरों के रिश्ते आये, मगर रावी को किसी में  कुछ कमी नजर आती तो किसी में कुछ, जिसकी वजह से उसकी उम्र भी बढ़ती जा रही थी और साथ ही साथ उसके पिता की चिन्ता।