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शनिवार, 12 जून 2021

प्रतिबिम्ब

प्रतिबिम्ब


रावी आज सुबह से ही अपने खिड़की पर खड़ी होकर बाहर देख रही थी। आज उसे बाहर का मौसम बहुत ही सुहाना लग रहा था। तभी किसी ने उसे पुकारा, ‘‘रावी ! क्या बात है मैडम, कब तक इस मौसम का अकेले-अकेले लुफ्त उठाईयेगा ?’’ अचानक उसकी तन्द्रा टूटी। उसने पीछे देखा । ये कोई और नहीं बल्कि उसका पति विजय था। रावी को धीरे से विजय ने पकड़कर कुर्सी पर बिठाया और प्यार से थोड़ी डाँट लगाई, ‘‘डाॅक्टर ने आपको चलने-फिरने व बहुत देर तक खड़े रहने को मना किया है। आप को जो कुछ चाहिए, बस फरमाइये, बंदा आपकी खिदमत में लेकर हाजिर हो जायेगा।’’ 


विजय की ऐसी बातों से रावी के होठों पर मुस्कुराहत आ गई। विजय ने सूप के बाउल को हाथों से उठाया और रावी को एक चम्मच सूप पिलाना चाहा । रावी की आँखों में आँसू आ गये। आखिर क्या वजह थी कि रावी के इन आँसुओं की ?

 आइये पीछे की कहानी जानते हैं।


रावी बचपन से ही बेहद खुशमिजाज व खुबसूरत दिखती थी। उसने अपनी माँ की तरह हर चीज को सुव्यवस्थित रखना सीखा था। उसे वो हर चीज जो खूबसूरत व अच्छा दिखती थी, बहुत पसन्द आती थी। किसी भी चीज में जरा सी खामियों से वह चिढ़ सी जाती थी। यहाँ तक कि उसके कितने ही प्रिय खिलौने ही क्यों न हों,  जरा सा दाग या धूल लगने पर वह उसे फेंक दिया करती थी। रावी के माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे। जो भी चीज उसे पसन्द आती थी वे उसे वह चीज लाकर दे देते। 




रावी दिन-प्रतिदिन बड़ी होती गई और वह पहले से भी ज्यादा खुबसूरत और स्मार्ट दिखने लगी थी। उसने सभी दोस्त ऐसे बनाये थे, जो दिखने में उसके रंग-रूप व पहनावे के अनुरूप थे। रावी अब विवाह के योग्य हो गयी थी। एक से एक बड़े घरों के रिश्ते आये, मगर रावी को किसी में  कुछ कमी नजर आती तो किसी में कुछ, जिसकी वजह से उसकी उम्र भी बढ़ती जा रही थी और साथ ही साथ उसके पिता की चिन्ता। 


फिर एक दिन विजय के घर  से रावी के लिए रिश्ता आया। रावी के पिता ने रावी को विजय का फोटो नहीं दिखाया और ना ही उसे विजय से मिलवाया। बस उसके कार्य व उन्नति का बखान कर रावी  को ‘हाँ’ करने को मजबूर कर दिया। रावी की शादी विजय से हो गई। रावी ने जब मंडप में विजय को देखा तो शादी ना करने की बात कही। पर उसे पिता की जिद के आगे झुकना ही पड़ा। क्योंकि रावी के पिता को जिन्दगी का तजुरबा था। वो इस बात को जानते थे कि विजय  का रंग काला जरुर है पर दिल का वह नेक इन्सान है, अगर उनकी बेटी को कोई खुश रख सकता है वो विजय है।


रावी अपनी शादी से बहुत नाराज थी। उसने विजय को कभी भी पति का स्थान नहीं दिया। समय-समय पर उसे नीचा दिखाती रहती थी। विजय के दोस्तों के सामने वो विजय का मजाक उड़ाती रहती थी। विजय रावी की बदतमीजियों को उसकी नादानी समझ उसे हमेशा माफ कर देता था। विजय जब रावी के माता-पिता से बात करता तो उन्हें बहुत बेबस पाता। वो उससे अपनी बेटी की तरफ से हमेशा माफी माँगते थे।


शादी के दो वर्ष बीत गये पर विजय के प्रति रावी का बर्ताव वैसा ही रहा। एक दिन विजय ने रावी को विदेश में नौकरी लगने की बात बताई। रावी विजय के साथ जाना नहीं चाहती थी, पर माता-पिता की जिद के आगे उसे जाना ही पड़ा।




विदेश में विजय रावी को अपने दोस्तों से मिलवाना चाहा, पर  रावी ने उसे मना कर दिया। रावी विजय के दोस्तों को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करती थी। वे हमेशा विजय की तारीफ करते रहते थे। विजय को वो देखना नहीं चाहती थी, उसे अपने जीवन से बर्खास्त कर रही थी। एक दिन रावी के पेट में तेज दर्द उठा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। पर उसने विजय को फोन नहीं किया बल्कि माँ को फोन कर अपना दुःख बताया। माँ ने रावी को हमेशा की ही तरह से समझाया कि वह विजय जैसे सोने को कोयला समझने की भूल कर रही है। रावी की  माँ ने विजय को बताया कि रावी के पेट में दर्द उठता रहता है। विजय ने उसे तुरन्त डाॅक्टर को दिखाया । परीक्षण कराने के बाद रावी के पेट में ट्यूमर निकला। डाॅक्टर ने रावी को आपरेशन कराने की सलाह दी। विजय ने दौड़-भाग कर सारा इन्तजाम किया। रावी का आपरेशन सफल रहा।


आपरेशन के बाद जैसे कि विजय ने रावी का ख्याल रखना अपने जीवन का उद्देश्य ही बना लिया था। विजय रावी का पूूरा ख्याल रखता था, उसे डाॅक्टर की हिदायतों के अनुसार हर काम करवाता। रावी को समय पर दवा देना, खाना खिलाना, उसका ख्याल रखना उसे बहुत पसन्द था। विजय रावी से सच्चा प्यार जो करता था। 


विजय का व्यवहार रावी को बहुत शर्मिंदा महसूस कराता था। रावी ने अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए विजय से मन ही मन माफी माँगती पर उसके होंठ उसे ऐसा करने से रोक देते थे। आज रावी खिड़की पर खड़ी अपसने पुराने दिनों को याद कर रही थी कि उसने विजय के साथ कितना बुरा व्यवहार  किया फिर भी विजय ने उसे कभी भी प्यार करना व उसका ख्याल रखना नहीं छोड़ा। तभी पीछे से विजय की आवाज ने रावी का ध्यान तोड़ दिया । विजय ने उसे प्यार से डाँटा, ‘‘ डाॅक्टर ने तुम्हें ज्यादा देर खड़ा रहने को मना किया है और तुम्हें व्यर्थ की चिन्ता भी नहीं करनी है। ’’


विजय आज बहुत खुश था। डाॅक्टर ने आज रावी को पूरी तरह स्वस्थ बता दिया था। उसने रावी से कहा, ‘‘ अगर तुम चाहो तो मेरे आफिस के दोस्त तुमसे मिलना चाहते हैं और तुम्हारे स्वस्थ होने पर एक छोटी पार्टी भी करना चाहते हैं।’’ रावी ने धीमे से ‘हाँ’ कह दिया।


अगले हफ्ते पार्टी में रावी खूब सज-धज कर विजय के साथ जाने को तैयार हुई। विजय उसे पहली बार इतना खुश देख रहा था। पार्टी में दोस्तों ने रावी का जोरदार स्वागत  किया। विजय को ‘हूर के साथ लंगूर’ कह कर भी चिढ़ाया। रावी ने हसकर सभी से कहा, ‘‘ मेरे विजय लंगूर नहीं बल्कि दुनिया के सबसे सुन्दर दिल वाले व्यक्ति हैं। मैं भाग्यशाली हूँ जो मुझे उनकी पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ’’ और विजय के हाथों को पकड़ कर अपने प्यार का इजहार किया। 


ये कहानी इस बात को दर्शाती है कि किसी के रंग-रूप, रहन-सहन से किसी के व्यक्तित्व का आकलन करना गलत है। हम सभी को ईश्वर ने बनाया है। कोई काला है तो कोई गोरा है, कोई अच्छे नैन-नक्श वाला है तो कोई सामान्य। सभी उसी ईश्वर की रचना हैं। इन्सान की परख उसके आचरण व व्यवहार से मापना चाहिए कि वह इन्सान अच्छा है या फिर नहीं।


आज के लिए इतना ही !


Image:Google

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