![अभिलाषा अभिलाषा](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmuWS7Gm-3zAqxNWJFti_yqSZGj7GCaid2W0yMwLIrZ30r-qGQmbccifg3hw87XGWTLla7hyphenhyphenvhMDAQu2neGMdF3-L_j51KRwknQ88Dhvu8V3Wb6xo2Q3T5tAkAoxl3YEKXTZF44k_7vEQ/w441-h248/ABHILASHA+IN+HINDI.jpg)
सच कितना सुन्दर है यह हमारी अभिलाषा पर निर्भर करता है। पर कभी-कभी इसके परिणाम बहुत कष्टकारी हो सकते हैं। क्या हमनें कभी अपने चाहतों पर लगाम लगाई है ? शायद नहीं। दूसरों के अच्छे कपड़े देखे तो बढ़-चढ़ कर खरीदारी की। बड़ी गाड़ी देखी तो उसे पास होने की चाहत की। कोई नया मोबाइल देखा तो उसे पाने की चाहत की। और न जाने क्या-क्या ?
ये चाहत रुपी राक्षस हमारे मन और दिलो-दिमाग पर इस प्रकार वार करता है कि हमें खुद भी समझ में नहीं आता कि हम न चाहते हुए भी कई बार शापिंग-माॅल से ऐसी कई चीजों को घर पर उठा लाते हैं, जिसकी ना तो हमें आवश्यकता होती है और ना ही जिन्दगी में जरुरत।
इसी ‘अनचाही अभिलाषा’ पर आप सभी के सामने प्रस्तुत है, एक छोटी सी स्टोरी, जो इसकी निरर्थकता को व्यक्त करती है।
एक बार एक मेढ़क ने भगवान शिव को तप करके मनाया और जब भगवान शिव प्रकट हुए तो मेढ़क ने कहा, ‘‘ प्रभु ! मैं जिस स्थान पर रहता हूँ , वहाँ एक वृक्ष है जहाँ एक सर्प रहता है और जिससे मुझे हमेशा डर लगा रहता है। मैं डर-डर कर यूँ जीवन नहीं जीना चाहता हूँ तो मुझे भी सर्प बना दीजिये। भगवान शिव ने उसे सर्प योनी प्रदान कर दी तथा अंतर्ध्यान हो गये।
मेढ़क सर्प बन कर बहुत प्रसन्न हुआ। पर कुछ दिनों के बाद एक वनविलाव उसे खाने की चाह में उसपर आक्रमण कर दिया। किसी तरह वह अपनी जान बचाकर वह वहाँ से भाग निकला । पुनः भगवान की तपस्या करने के बाद उसने भगवान शिव से वनविलाव की योनी प्राप्त की। फिर वह सिंह से आतंकित हुआ और सिंह योनी और बाद में शिकारी योनी प्राप्त की।
अन्ततः उसने थक-हार कर एक बार फिर भगवान शिव की घोर आराधना कर भगवान को प्रसन्न किया और भगवान से बोला, ‘‘ हे प्रभु ! मैंने अपनी भूल को स्वीकार कर लिया है कि आपने मुझे मेढ़क बनाकर कोई भूल नहीं की। मैं कोई तुच्छ प्राणी नहीं था, जो कमजोर है। क्योंकि वास्तविक बल तो बुद्धि में होता है, जो ईश्वर नें सभी को प्रदान किया है। मैं नाहक ही बेकार के चक्करों में पड़कर परेशान रहा। मैं तो मेढ़क रहकर भी अपनी आत्मरक्षा कर सकता था। अब इतने बड़े शरीर को पालने के लिए भोजन का प्रबन्ध कर-कर के थक गया किन्तु कभी भी तृप्ति की अनुभूति नहीं हुई। कृपया प्रभु मुझे मेढ़क ही बना दीजिये।’’, ऐसा सुनकर भगवान ने उसे वापस मेढ़क योनी प्रदान की और वह मेढ़क बना बहुत प्रसन्न व सन्तुष्ट रहने लगा।
Image: Ek Nai Disha, 2021
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