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शनिवार, 17 दिसंबर 2016

बेसहारा

Besahara in Hindi

एक महिला ब्लू साड़ी में कार से उतर कर बच्चों के  अनाथ आश्रम  में आई। वार्डेन ने महिला को देखते ही कहा," प्लीज, मिसेज़ भट्टाचार्या ! आप यहाँ मत आया करें।" उस महिला के हाथ में कुछ खिलौने व चॉकलेट थे,जो उसने वार्डेन को देते हुए, नमन से मिलने की बात की।  आखिर कौन था नमन ? जिससे मिलने वह महिला कार में आया करती थी और क्यों उस महिला को  वार्डेन, नमन नाम के बच्चे से मिलने नहीं देना चाहती थी ? आखिर क्या वजह थी ? पर  उस दिन महिला के बार-बार कहने पर , वार्डेन ने महिला को एक कापी दी, जो उस बच्चे की थी, जिसे पढ़ कर महिला के आँखों से आंसू छलक गए और वह  नमन से मिले बिना ही लौट गई।

उस कॉपी में लिखा था - "माँ ! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया ? मुझे आपकी बहुत याद आती है।  माँ ! मुझे पता है कि मैं आपका बेटा नहीं हूँ, पर मेरी माँ तो आप ही थी, जिसके साथ मैं जीवन भर रहना चाहता था।  आप मुझसे मेरी कमी की वजह से नाराज हो, पर माँ ! आप ही बताओ, इसमें मेरा क्या दोष है ? मैं भी सबकी तरह बातें  करना चाहता हूँ। सबकी बातें  सुनना चाहता हूँ।  पर  माँ मुझे आपके विधाता ने सुनने व बोलने की शक्ति ही नहीं दी तो मैं क्या करूँ माँ ?  मुझे यह बात समझ में आ गई है कि आप मेरी कमी की वजह से मुझे यहाँ छोड़ गई हो। मेरा आपके  जीवन  और परिवार में कोई स्थान नहीं है। इस वास्तविकता को मैंने अब स्वीकार कर लिया है।  मैंने  इन अनाथ बच्चों को अब अपना परिवार बना लिया है। अब यही मेरा परिवार है। अब मुझे दुबारा अनाथ मत कर देना माँ।"

आखिर ऐसा क्या था, जिसने एक बच्चे की सोच को  अपने माँ के प्रति  इतना परिवर्तित कर दिया था ? इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए आइये पहले की कहानी को जानते है... 

सपना अपने पति व परिवार से बहुत प्रेम करती थी। सपना के घर में आ जाने से सभी लोग बहुत खुश थे। समय बीतते गया और जैसे किसी की नजर घर के खुशियों को  लग गई। सभी लोग  उदास व दुखी रहने लगे, जिसका कारण सपना का शादी के कई वर्षों के बाद भी माँ न बन पाना था। माता - पिता बनने की ख्वाहिश को पूरा करने की कामना लेकर सपना और उसका परिवार ना जाने कितने मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों की दहलीजों पर गए। पर उनकी ख्वाहिश अधूरी ही रह गई। फिर सभी के कहने पर अच्छे से अच्छे डॉक्टरों को भी दिखाया गया, पर कोई भी फायदा न हो पाया। आखिर में दोनों ने निर्णय  लिया कि वह एक बच्चे को गोद लेंगे। फिर उन्होंने अनाथ आश्रम के न जाने कितने चक्कर लगाये, पर उन्हें एक भी नवजात शिशु नहीं मिल सका। वह बहुत ही निराश हो गए।  सपना सोचने लगी कि परमात्मा ने हमें इस योग्य भी नहीं समझा कि हम किसी की परवरिश कर सकें। फिर एक सुबह, अनाथ आश्रम से फ़ोन आया। वहाँ एक नवजात बच्चे के आने की सूचना मिली।  दोनों तुरंत आश्रम पहुँच गए और बच्चे की कस्टडी की कार्यवाही पूरी कर उन्होंने बच्चे को गोद ले लिया।



बच्चे के घर में आ जाने से घर में जैसे ख़ुशी ने दस्तक दे दी हो। वक़्त का पहिया तेजी से घूम रहा था। छः माह बीत गया था।  एक दिन सभी ने गौर किया कि जैसे इस उम्र में बच्चे, लोगों की बातें सुनकर कुछ एक्टिविटी करने लगते हैं, पर उस बच्चे में कुछ भी कहने पर या कोई भी एक्टिविटी करने की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती थी।  न जाने ऐसा क्या था उस बच्चे में ?  उस दंपत्ति ने तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया।  जो बातें सामने आईं, वो बहुत ही दुखदायी थीं। बच्चा बोलने व सुनने में असमर्थ था। इस प्रकार दंपत्ति की खुशियाँ मानो किसी ने वापस छीन ली। यह बात पता चलते ही घर के लोगों का नज़रिया भी बच्चे के प्रति बदल गया। बच्चा धीरे-धीरे पाँच वर्ष का हो गया था।  एक दिन सपना ने सभी को बताया कि वह माँ बनने वाली है।  घर में तो जैसे खुशियों की लहर आ गई हो। सभी बहुत खुश और निश्चिन्त हो गए।  अब सभी का प्यार उस अजन्मे बच्चे के प्रति खिंचता चला जा रहा था।  और जब सपना ने बच्चे को जन्म दिया, फिर सभी का यही कहना था कि गोद लिए बच्चे नमन को जहाँ से लाये हो वहीँ छोड़ दो, हमें यह कष्ट के सिवा कुछ भी नहीं देगा।  रोज-रोज की यही बातें सुनकर, दंपत्ति ने आखिर एक दिन फैसला ले ही लिया कि अब बच्चे को अनाथालय छोड़ आयेंगे।

दम्पति ने अगली सुबह उस बच्चे को वापस अनाथ आश्रम पंहुचा दिया, जहाँ से कभी एक बच्चे के भविष्य को उज्जवल बनाने के उद्देश्य से उसे अपने घर में ले आये थे। उस मासूम को तो इतना भी नहीं पता था कि उसको किस बात कि इतनी बड़ी सजा दी जा रही है। उस बच्चे को तो यही लग रहा था कि माँ मुझे  हमेशा  की तरह घुमाने के लिए यहाँ ले आईं हैं, फिर मुझे यहाँ से वापस घर ले जाएँगी। दिन महीने और महीने साल बन गए, उस मासूम को अपनी माँ की राह देखते हुए। वह रोज अपने रूम की खिड़की पर आँख टिकाये माँ के आने का इंतजार करता रहा।  उसकी आँखे देखकर ऐसा लगता था, मानो कुछ आंसू उस मासूम ने अपने आँखों में बचा रखे थे कि जब उसकी  माँ आएगी तो उनके गले लग कर अपना दर्द बयां कर सके । पर उस नादान को पता नहीं था कि लौट कर वही आते हैं, जो हमें अपना मानते हैं। जिनके लिए हम पराये या तुच्छ हों, उनके आने की आस नहीं देखी जाती। वह बच्चा 5 साल तक अपने माँ के आने की आस लिए अपना जीवन जीता  रहा। और फिर उसने शायद अपने भाग्य से समझौता कर अनाथ आश्रम को अपना घर और वहां के लोगो को अपना परिवार समझ लिया । 

ये कहानी मेरी कल्पना का  प्रतिरूप थी। इस कहानी के माध्यम से, मैं आप सभी तक यह सन्देश पहुँचाना चाहती हूँ कि हर रचना उस ईश्वर की बनाई हुई है।  'क्या अच्छा है ?' या 'बुरा है'  इस बात का निर्धारण हम स्वयं  नहीं कर सकते हैं। क्योकि ईश्वर की हर रचना की कोई न कोई खूबी व अपनी कमियाँ होती हैं, जिसे हमें दिल से स्वीकार करना चाहिए। कोई चीज परफेक्ट नहीं होती है। हमें यह समझना बेहद जरूरी है कि जब हम किसी को अपनाये तो उसकी खूबी के साथ उसकी खामियों से भी प्यार करना सीखें । 

Image-Google

20 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद मार्मिक रचना की प्रस्‍तुति। मुझे आपकी यह रचना बहुत पसंद आई।

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    1. जमशेद जी, आपने मेरी रचना को अपना बहुमूल्य विचार दिया आपका आभार ...

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  2. आपकी हर कहानी की तरह यह भी एक उत्कृष्ट कृति है, जो हर किसी के दिल को छू सी जाती है।

    मृत्युंजय

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    1. मृत्युंजय जी, जब आप सभी के विचार मेरी रचना को मिलता हैं तो और भी बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है, आपका धन्यवाद ....

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  3. आप अपनी कहानी के लिये इतनी अच्छी अच्छी तस्वीरें कहाँ से ढूंढ लाती हैं ? बड़ा ही मनमोहक लगता है।

    मृत्युंजय

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    1. मृत्युंजय जी, मेरी कोशिश के प्रति आपके विचार जानकार मुझे बहुत खुशी हुई, और कहते हैं ना, जब हमें कोई चीज़ पसंद आ जाती है तो वो हमें हर तरीके से बेस्ट लगती है अपना स्नेह मेरे पोस्ट के प्रति बनाए रखिए ,आपका फिर से धन्यवाद ...

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  4. aapki kalpna bahut achchi hai, aapki likhi har kahani dil ko chu jati hai, nice

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    1. आप अपना स्नेह मेरी रचना के प्रति बनाए रखिए, कमेंट के लिए बहुत -बहुत आभार ....

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  6. सही कहा है आपने ... इस मार्मिक कहानी के साथ गहरा सन्देश दिया है ... अपना कर छोड़ देना गहरा सदमा देता है ... जजों जैसा है अपना लिया तो बस अपना लिया ...

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    1. मेरी कोशिश को पसंद करने के लिए और अपना विचार देने के लिए आपका आभार ....

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  7. बहुत मर्मस्पर्शी कहानी है .
    किसी के दिल पर क्या गुजरे इसका गंभीरता से सोच विचार किये बिना कितने जल्दी निष्ठुर हो जाते हैं इंसान

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    1. कविता जी, अपना विचार देने के लिए आपका आभार....

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  8. मानवीय संवेदनाओं से भरपूर हृदयस्पर्शी रचना .. इस रचना ने ये साबित कर दिया है कि आपकी पकड़ बच्चों के मनोविज्ञान पर अद्वितीय है.. रश्मि जी..मेरी बधाइयाँ इस अप्रतिम रचना के लिए स्वीकार कीजिए..

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    1. दीपा जी, हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरी रचना के प्रति अपना प्रेम बनाएँ रखें...

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  9. जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई रश्मि जी! आप हमेशा खुश रहे... आपका हर सपना पूरा हो...!!

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  10. दिल से स्वीकार किया ज्योति जी, मुझे बहुत खुशी होती है कि इतने प्रतिभाशाली और नेक दिल मित्रों का साथ मुझे मिला, कमेंट के लिए फिर से आपका आभार....

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  11. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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