आज मैं जब सुबह उठी तो मैंने देखा कि एक महिला अपने बच्चे को साथ लिए गेट पर खड़ी है, खाने के लिए कुछ मांग रही है ,और वह भजन भी गा रही थी। उसका बच्चा जिसके हाथ में एक कटोरा था और उससे वो गाने की धुन निकाल रहा था। यकीन मानिये उस धुन को सुन कर ऐसा लग रहा था, जैसे की उन्होंने किसी संगीत में महारत गुरुओं से शिक्षा ली है। उनके पास सभी खिचे चले आ रहे थे, बहुत भीड़ लग गई थी। उस दिन मुझे ये लगा की हुनर कही भी किसी का हो सकता है।
जब अपने हुनर को पहचान कर हम उसे निखार लेते है, तो यही हुनर हमारी पहचान बन जाता है। न जाने कितनी ही गृहणियाँ होंगी जिनके अंदर अदभुत गुण भरे पड़े हैं , मगर उन्हें कोई प्लेटफार्म नहीं मिल पाता। कभी-कभी अपने हुनर से वो खुद भी अनजान रहती है।