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गुरुवार, 2 जून 2016

मिठास की कड़वाहट

Mithas ki Kadvahat in Hindi

क्या बात थी ? आज रामू बहुत खुश था। बहुत ही ज्यादा खुश। आज जीवन में पहली बार उसकी हाथों में मीठे ,शुद्ध देशी घी से बने पेड़ा का दोना जो  था,  जिसकी केसर और इलायची  खुशबू रामू के तन -बदन को महका रही थी। वह बस एक टक पेड़े के  दोने को देखे जा रहा था। तभी मालकिन की आवाज सुन कर रामू की तन्द्रा टूटी।  मालकिन ने  रामू से कहा," साहब ने  जो कागज दिया था, वो कहाँ है ?"। रामू  को  मालिक ने जो कागज दफ्तर से घर ले जाकर देने को कहा था, उसने उसे मालकिन के हाथों में पकड़ाते  हुए, वह  एक बार फिर से  पेड़ों की मिठास की दुनियां में खो गया। वह यही सोच रहा था कि ये पेड़े खाने में कितने स्वादिष्ट  होंगे।

तभी मालकिन ने रामू से कहा,"रामू ! बैठे क्यों हो ? खाओ ना। " मालकिन की बात सुन कर रामू को रहा न गया और उसने एक पेड़ा उठाकर मुंह में रख ही लिया। फिर  उस पेड़े की मिठास से रामू का रोम -रोम आनन्दित हो गया। एक पेड़ा खाने के बाद उसको अपने परिवार का ख्याल आया।  

शनिवार, 14 मई 2016

तलाक़

Talak in Hindi

जीवन में हम सभी रोज किसी न किसी उलझनों से घिरे रहते हैं। कुछ उलझन तो बिन बुलाये आ जाते हैं ,और कुछ हमारे द्वारा निमंत्रण देने पर आते हैं, जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार होते हैं।

एक वो भी दौर हुआ करता था, जब शादी हो जाने के बाद पति -पत्नी एक दूसरे के ऊपर अपना सारा जीवन न्योछावर कर देते थे। एक दूसरे की भावनाओं का  सम्मान करते थे व एक दूसरे में अपनी पूरी दुनियाँ समझकर जीवन जीते चले जाते थे। हमने कभी भी ये नहीं सुना होगा कि दादा -दादी में नहीं निभी तो उन लोगों ने तलाक ले लिया। या फिर ताऊ जी, जो ज्यादा बड़ी माँ पर गुस्सा करते थे, तो ताई जी ने अलग होने का निर्णय ले लिया। ऐसा तो हमने अपने माता -पिता के साथ भी नहीं देखा। पर आजकल की पीढ़ी ,जो जरा सी परेशानी की हवा क्या चली एक दूसरे का मुँह तक नहीं देखना चाहते। थोड़ी सी ऊंच -नीच होने पर उनको एक मिनट भी नहीं लगता- अलग होने का फैसला लेने में। सच कितनी मॉडर्न हो गई है आज कल की  पीढ़ी !

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

नज़रिया

Nazaria in Hindi

मेरी शादी को कई वर्ष बीत गए हैं।  पर जब मैं अपने कॉलेज के  दिनों के बारे में सोचती हूँ ,तो मन में जो तस्वीर सामने आती है, वो आज भी वैसी की वैसी ही है। हम बदल गए। हमारा रहन -सहन ,पहनावा, यहाँ तक कि  हमारे खान -पान में भी काफी परिवर्तन आ गया है। मगर आज जो नहीं बदला वो है- लोगों की आदतें। उस वक्त के कुछ  लड़कों का काम था कि उनको जब भी समय मिलता, वे गली-नुक्क्ड़ पर खड़े हो जाया करते थे। उस समय भी मुझे उन मनचले लड़कों की कमेंट पास करने की मानसिकता समझ में नहीं आती थी।  और आज भी जब ऐसी घटना के बारे में मैं अपने आस -पास सुनती हूँ  तो उन लड़को पर हंसी  भी आती है और गुस्सा भी। वो लड़के क्यों इस बात को नहीं समझते हैं कि उनके इस तरह के व्यवहार से सामने वाले पर क्या गुजरती होगी ? 

मुझे आज भी याद आता है, कॉलेज जाते समय, मैं  रास्ते में अपनी दोस्त के घर उसे साथ लेने के लिए जाती थी। उसके  घर तक जाने के लिए एक  गली पार  करनी होती थी । उसी गली में कुछ लड़कों  की टोली बैठा करती थी। मैं और मेरी दोस्त जब भी कॉलेज जाने के लिए निकलते थे ,तो वो ना जाने क्या उलटी -सीधी बातें बोलने लगते थे। हम दोनों उन लड़कों के इस व्यवहार से गली से गुजरने में बहुत ही असहज महसूस किया करते थे। आखिर उनको क्या आनंद आता था, ऐसा करते हुए। पर उनके ऐसे अभद्र व्यवहार से हमारे मन में उन लोगो की बहुत बुरी छवि बनती थी, जो उन लड़कों को शायद नहीं पता था। 

बुधवार, 9 मार्च 2016

बस बहुत हुआ !

 हमारी माँ ,वो प्यारी माँ, जिसे अपने बच्चे में सारी दुनिया दिखाई देती है और हर बच्चे के दिल में अपने माँ के लिए भी बहुत आदर -सम्मान होता है। वो अपनी माँ को कभी दुखी नहीं देख सकता है ,न ही उसके आँखों में आँसू देख पाता  है। अगर जाने -अनजाने हमारी माँ को कोई कष्ट पहुँचाता है, तो हमारा खून खौलने लगता है। हम उस व्यक्ति से लड़ने -झगड़ने को पहुंच जाते है। वह व्यक्ति हमें दुनियां का सबसे बुरा व्यक्ति लगने  लगता है। 

आज मैं एक ऐसी ही माँ के बारे में आप सभी से कुछ कहना चाहती हूँ। जिनके हम सभी बच्चे हैं। आज हमारी माँ रो रही  है ,उनकी आखों में आसूँ है।  वो चीख -चीख कर के जेऐनयू  के छात्रों से  कह रही है ,"मेरे लाल ! मैंने तुझ पर अपना जीवन न्योछावर कर दिया। पर तुमने मुझे क्या दिया ? मैंने तुझे अपना दूध पिलाया था। पर  मेरे लाल ! तेरे रगों में मेरे खिलाफ जहर कैसे  भर गया ?" ये बातें कहने वाली  माँ और कोई नहीं, हमारी भारत माँ हैं। जिनकी आँचल की छाँव में हम सभी चैन की साँस लेते हैं। कुछ चंद लोग हम सभी  की  भारत माँ को गालियां दे रहें हैं। मैं  पूछती हूँ उन नवजवानों  से, जो खुद को ज्यादा समझदार समझते हैं, जिनको लगता है कि वो दुनियां को बदलने का दम  रखते हैं-क्या ऐसे ही दुनियाँ को बदलेंगे ? 

रविवार, 6 मार्च 2016

नई सोच की सुबह

हेलो फ्रेंड्स ! मैं ब्लॉगअड्डा साइट पर एरियल #ShareTheLoad  कैंपेन को सपोर्ट कर  रही हूँ , जिसका उद्देश्य है -हमें उन पूर्वाग्रहों से मुक्त होना है जो की प्रायः हमारे घर में दिखते  हैं और जिन्हें हम एक जेनेरेशन से दुसरे जेनेरेशन को शिफ्ट करते हैं, जैसे कि घर के घरेलू काम-काज (I am joining the Ariel #ShareTheLoad campaign at BlogAdda and blogging about the prejudice related to household chores being passed on to the next generation.) इस सन्दर्भ में मेरे अनुभव व् विचार कुछ इस प्रकार हैं। ... 

हम सभी ने अपने माता-पिता को घर के कार्यों को पूर्ण जिम्मेदारी के साथ करते हुए देखा होगा।  हमनें अपने पिता  को अक्सर माँ से कहते हुए यह भी देखा होगा कि," तुम अपना काम ठीक से किया करो।शर्ट में दाग लगा है, जो तुमने ठीक से धोये नहीं। " और माँ से भी सुना होगा जो पिता जी को हमेशा बिज़नेस अच्छा न चलने के कारण कहती हैं,"आप घर में खर्च कम दे रहे हैं। बच्चों और परिवार की गृहस्थी का भरण-पोषण करना आपकी जिम्मेदारी है।" हम भी शादी होने के बाद उन संस्कारों को जाने-अनजाने ग्रहण कर लेते हैं और पति से बाहर  जा कर कमाने को उनका काम समझते हैं। जबकि हमारे पति घर के कार्यों का उत्तरदायित्व हमें सँभालने को कहते हैं। मगर क्या हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों के रगो में यही संस्कार खून की तरह नहीं दौड़ा रहे हैं ?

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

छोटी आशाएँ

Chhoti Aashayen in Hindi


सुख और दुःख जीवन के महत्वपूर्ण पहलू है। जब बच्चा  जन्म लेता  है , तो  माँ  को न जाने कितने कष्टों का सामना करना पड़ता है और उसके आँख खोलते ही सारे दुःख ख़ुशी में परिवर्तित हो जाते है। संसार में  जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति इस सुख -दुःख के चक्कर से बच नहीं सका है। जब कभी हम दुखी होते हैं , तो हम बहुत अधिक निराश हो जातें हैं। हमें लगता है कि ये समय कब बीतेगा ,कैसे बीतेगा। 

और जब हम खुशियों के दिनों को एन्जॉय करते है तो हम अपने उन दिनों का स्मरण भी नहीं करना चाहते है। मगर ये सुख -दुःख हमारे जीवन की परछाईयाँ है, जिनसे हम कभी भाग नहीं सकते और जब हम जीवन में आये मुश्किलो से घिर जाते है तो तभी हमें अपने और परायों की परख होती है। क्योकि जो लोग हमारे अच्छे दिनों के  साथी होते है उनमें से  ही कुछ लोग ऐसे भी होते हैं , जो परेशानियों में  हमसे  सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेते हैं। 

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

सच्ची आस्था

Sachchi Aastha

मैं कोई राइटर नहीं हूँ और मुझे बहुत बड़ी -बड़ी बातें भी नहीं करनी आती है। मगर इतना मेरे मन में जरूर चलता रहता है कि जब हम निराश होतें हैं या किसी कार्य को नहीं कर पाते है और हमें जब असफलता का सामना करना पड़ता है, तो हमें याद आते है- भगवान ,खुदा या गॉड या हम जिस भी धर्म  को मानते है, उस प्रभु की । और हम जुट जाते है, उन तमाम कार्यो में, जैसे कि चादर चढ़ाना,धागे बांधना ,नारियल चढ़ाना, कैंडल जलाना इत्यादि। क्या इन सभी कार्यों को करने से हमें वो सफलता मिल जाती है ? शायद हाँ ,या नहीं भी। मै नास्तिक नहीं हूँ, मगर ईश्वर पर अँधा विश्वास नहीं करती। मै ये नहीं जानती कि ईश्वर होते है या नहीं। मगर कोई शक्ति जरूर होती है ,जो हमारे आस -पास ही रहती है, जिसके द्वारा सृष्टी का  संचालन होता है।

 हमें अपने कार्यों को करने की जो शक्ति मिलती है, शायद  हम उसी शक्ति को पूजते है। मगर  क्या वो शक्ति बड़े -बड़े चढ़ावे मांगती है ? लोग मंदिरों,मस्जिदों ,गिरजाघरों में जातें हैं, उसी राह  में न जानें कितने जरुरतमंद बैठे रहते है और हम उन्हें अनदेखा करके उन मंदिरों में महँगे-महँगे चढ़ावे चढ़ाते है। मगर जो लोग हाथों को फैलाये हमसे माँगते है, उनका हमें ख्याल नहीं आता। बस यही याद रहता है कि हमारा चढ़ावा जितना बेस्ट होगा , मन्नत उतनी ही  जल्दी पूरी होगी। 

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

हुनर

HUNAR IN HINDI


आज मैं जब सुबह उठी तो मैंने देखा कि एक महिला अपने बच्चे को  साथ लिए गेट पर खड़ी है, खाने के लिए  कुछ मांग रही है ,और वह भजन भी गा  रही थी। उसका बच्चा जिसके  हाथ में एक कटोरा था और  उससे  वो गाने की धुन निकाल रहा था। यकीन मानिये उस धुन को सुन कर  ऐसा  लग रहा था, जैसे की उन्होंने किसी संगीत में महारत गुरुओं से शिक्षा ली है।  उनके पास  सभी खिचे चले  आ रहे थे, बहुत भीड़  लग गई थी। उस  दिन मुझे ये लगा की हुनर कही भी किसी का हो  सकता है। 

जब अपने  हुनर को पहचान  कर हम उसे निखार लेते है, तो यही हुनर हमारी पहचान बन जाता है। न जाने कितनी ही गृहणियाँ  होंगी जिनके अंदर अदभुत गुण  भरे पड़े हैं , मगर उन्हें कोई प्लेटफार्म नहीं मिल पाता।  कभी-कभी अपने हुनर से वो खुद भी अनजान रहती है।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

नारी का सम्मान

NAARI KA SAMMAN


आज कल हमारे घर के भीतर और बाहर लड़कियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं , ऐसा क्यों ? कुछ घटनायें बीते वर्ष में  घटित हुई हैं , जो इतनी घृडित  और वीभत्स  हैं ,जिसकी याद जेहन में आते ही मन सिहर उठता है।  न जाने कितनी बेटियों की इज्जत को मिटटी में मिला  दिया गया , जिससे उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी ,और तो और , समाज  में बेटियों का  इज्जत से जीने का अधिकार भी छीन लिया जाता है। हमारी बच्चियाँ आजादी से कहीं जा नहीं सकती , कौन से व्यक्ति की नियत कब ख़राब हो जाये ,कुछ कहा नहीं जा सकता।  क्या इसके लिए सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार हैं ? नहीं ! इस असुरक्षा के लिए लिए हम सभी  जिम्मेदार हैं।

आजकल , भारतीय पहनावे को  लोग भुलाकर और पश्चिमी सभ्यता के पहनावे को अपनाकर खुद को दूसरों बेस्ट दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं।माता - पिता को फुर्सत नहीं है कि वो  अपने बच्चों की  ओर ध्यान  दे सके कि हमारे बच्चे क्या करते हैं , किन लोगों के बीच रहते हैं , कहाँ जाते हैं , उनके मित्र कैसे हैं ? उनको कुछ भी जानकारी नहीं होती।  और तो और , बच्चों को उनकी जरुरत और और उम्मीद से ज्यादे सुविधायें और पॉकेट मनी दे देते हैं , जिसका बच्चे खुल कर मनचाहा दुरुपयोग करते हैं। हम अपने माता -पिता के दिए गये  संस्कारों को भूल जाते हैं. हमारे पिता जी हमारे हाथों में पैसे नहीं देते थे बल्कि हमारी सारी जरूरतें पूरी कर देते थे, और समय -समय पर रोक -टोक होती थी कि कहाँ गई थी,किसके साथ थी ? हमें बुरा भी लगता था। मगर आज जब हम समाज में बेटियों के साथ बुरी घटनाओं के घटित होने की खबर पढ़ते हैं , तो हमें दुःख होता है , पर क्या हमें अपनी सोच बदलनी नहीं चाहिये ?