☀ ♥ अप्रैल , 2024 : दिन - :: ♥ ♥ : ''एक नई दिशा' में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है ! -- जय श्री राम !॥ !♥ ♥" ♥☀ ♥

गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

अल्हड़पन

 हमने बच्चों को अक्सर खेलते हुए देखा होगा। कितनी ऊर्जा होती है उनके भीतर ! दिनभर हँसते  मुस्कुराते रहते है। उनके नन्हे कदम दिन-रात दौड़ते रहते हैं,फिर भी नहीं थकते। बच्चों के चेहरे देखकर ऐसा लगता है, जैसे ईश्वर ने उन्हें सारी खुशियाँ दे दी हैं। वो कितनी सुकून भरी जिंदगी जीते हैं ! 

बच्चों के वह खेल -खिलौने, वह बोतलों के ढक्क्न ,वह माचिस की डिबिया, वो नन्हे बर्तनों का पिटारा ,छोटी सी कार जिसमें दुनियाँ की सैर करते रहते हैं। बच्चों का जीवन भी क्या जीवन होता है ! हर कार्य को करने का कितना उत्साह भरा होता है उनमें !  पर ये ऊर्जा बड़े हो जाने पर कहाँ  खो जाती है ? 

हमने नन्हे बच्चे को देखा होगा,  जो अपने पराये का भेद नहीं जानते। जरा सा किसी का इशारा क्या मिला, खिलखिला कर हँस देते हैं। वो मासूम मुस्कराहट ऊँच-नीच ,गरीबी-अमीरी, अपने-पराये से कितनी अछूती है। और हम बड़े जब भी किसी से बात करते हैं, तो हम हमारे मन में मंथन करते रहतें हैं कि वह कैसा है ? हमारा क्या लगता है ? उसका स्टेटस कैसा है ? वगैरा -वगैरा। 

हम भी काश उन नन्हे बच्चों की तरह मासूम व स्वच्छ सोच रख पाते। ये नन्हे बच्चे हर कदम पर हमें ना जाने कितना कुछ सिखा जाते हैं । आपस में लड़ते -झगते हैं, फिर अगले ही पल सारी बातों को भुला कर ऐसे घुलमिल जाते है, जैसे कि  उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं।

हम बड़े इतने बुद्धिमान, परिपक्व हो जाने के बावजूद, अगर हमें  किसी ने जरा सी ऐसी बात कह दी, जो हमें पसंद नहीं आई, तो नाराज होकर बैठ जातें हैं।   दोबारा उन रिश्तों की तरफ मुड़ कर देखना भी नहीं चाहते हैं। हम बच्चों को हमेशा नासमझ समझते रहते हैं। पर क्या बच्चे सचमुच नासमझ होते हैं ? हमारी समझदारी से बेहतर उनकी नासमझी है, जो हमें पल भर में दूसरों को माफ़ कर दुबारा प्रेम करना सिखा जाते हैं।

बात चंद हफ्ते पहले की है।  मेरे घर गर्मी की छुट्टी मनाने बच्चे आये थे। उसी शाम मेरे घर पर काम करने वाली महिला भी अपने दो नन्हे बच्चों के साथ काम करने आई। हम सभी नाश्ता कर रहे थे। हमने उस महिला को अपने बच्चों के साथ गैलरी में बैठने को कह दिया ,और सभी नाश्ता -चाय में मशगुल हो गए। 

फिर क्या था ! हम सभी की नजर घर के सबसे छोटे बच्चे पर पड़ी। वह अपनी प्लेट कही ले जा रहा था। हमने उसे डांटा और उसे रोकने के लिए पीछे गए। तो देखा कि वह बच्चा काम करने वाली महिला के बच्चों के साथ अपना नाश्ता शेयर करने लगा। हमने उस बच्चे  को डांटा। फिर दूसरी प्लेट में काम वाली के बच्चों को खाने को दिया।

और जब मैं अकेले में बैठी तो सोचने लगी- आज जो काम 3 वर्ष के बच्चे  किया ,ऐसा हम  सभी क्यों नहीं कर पाते  हैं ? वो निष्छल सोच हम सभी के अंदर  क्यों   नहीं आती है ? ऐसा इसलिए है, क्योंकि  हमने खुद  अपने आगे -पीछे, ऊँच -नीच ,अमीरी -गरीबी का ऐसा  घेरा बना लिया है कि जिसे तोड़ पाना  सम्भव नहीं है। क्योकि अब  हम नासमझ थोड़े ही  रहे, जो ऐसा  करेंगे ! अब तो हम समझदार हो गए है ,बेहतरीन समझदार। 

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

गणतंत्र दिवस 2024 की हार्दिक शुभकामनाएँ !

 

HAPPY REPUBLIC DAY - EK NAI DISHA 2024

'एक नई दिशाकी ओर से आप सभी को गणतंत्र दिवस 2024 की हार्दिक शुभकामनाएँ  !


#IndiaRepublicDay

#गणतंत्रदिवस


Image:Ek_Nai_Disha_2024

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

बदलाव

 श्याम और दिवाकर बहुत ही अच्छे दोस्त थे। अपना हर सुख-दुख एक दूसरे के साथ बाँटते थे, एक साथ समय बिताते और ऐसे ही एक दूसरे को जानते हुए उन्हें बीस वर्ष हो गये । ये बचपन के दोस्त जो थे। अब एक ही कम्पनी में जाॅब भी करते थे। पर एक दिन दिवाकर के मोबाइल में एक लड़की की तस्वीर देखकर श्याम  हैरान रह गया। उसने दिवाकर से प्रेम -प्रसंग छुपाकर रखने के कारण थोड़ा गुस्सा भी दिखाया। पर दिवाकर ने कहा- "मैंने इसकी थोड़ी मदद कर दी थी तो बस दोस्ती हो गयी, यार श्याम  जब कुछ ऐसा होगा तो, मैं सबसे पहले तुझे बताऊँगा।" 



पर श्याम की आँखों में उस लड़की का चेहरा समा गया था। मन ही मन वो उसे चाहने लगा था। फिर एक दिन अचानक उस लड़की से श्याम की मुलाकात हो गई। 'माया' नाम था उसका। वो किसी से ज्यादा मेल-मिलाप ना रखने वाली लड़की थी। पर दिवाकर का नाम सुनकर दोस्ती करने को तैयार हो गई और यह दोस्ती धीरे-धीरे कब प्यार में बदल गई ये श्याम और माया दोनों को ही पता नहीं चला। 


एक दिन श्याम ने माया से अपने दिल की बात कह दी पर माया ने शादी की बात को टाल दिया। फिर एक दिन अचानक लखनऊ जाने की बात कह कर चली गई और फिर उसका कोई अता-पता नहीं चला। श्याम  ने दिवाकर से अपने और माया के बारे में सारी बात बता दी तो दिवाकर से उसे उस कम्पनी का नाम और फोन नम्बर मिला जहाँ माया काम करती थी। कम्पनी ने उसे माया के घर का नम्बर दिया। श्याम ने उसे घर पर फोन किया तो माया ने फोन उठाया और उसने कहा कि उसके पापा को हार्ट अटैक आया है और बीमार  हैं। वो उसकी शादी अपने दोस्त के बेटे के साथ जल्दी कराना चाहते हैं, जो एक अच्छी जगह पर जाॅब करता है। उसकी सैलरी बहुत अच्छी है, घर बहुत बड़ा है।  माया उस अन्जान शख्स के तारिफों के पुल बाँधती रही और श्याम सुनता रहा। 


अचानक श्याम ने माया को टोका और पूछा- "हमारे प्यार का क्या ?" माया ने श्याम  को उत्तर दिया, जिसकी उसे कभी भी उम्मीद नहीं थी। उसने श्याम से कहा- "समय के साथ सब धुँधला हो जाता है। यदि पैसा और पोजीशन न रहा तो जीवन कैसा ? मेरी मानो तुम भी जिन्दगी में आगे बढ़ो और कहीं अच्छी जगह जाॅब कर लो, जहाँ सैलरी जीवन जीने लायक मिले।"




माया की बात सुनकर श्याम हतप्रभ सा रह गया कि उसने प्यार के बारे में जो सुना था, क्या वो यही है ? जिसके लिए लोग मर भी जाते हैं। श्याम ने माया को फिर कभी पलट कर नहीं देखा। शायद यही सच्चे प्यार की पहचान थी, जिसे श्याम ने निभाया।


समय बीतता गया। श्याम को एक दिन काॅल आया। दिल्ली से कोई कम्पनी उसे जाॅब ऑफर  करना चाहती थी। श्याम भी अब उस शहर से दूर हो जाना चाहता था, सो उसने ऑफर  स्वीकार कर लिया। उसी दिन माया की भी शादी थी। श्याम अपनी आँखों में आँसू लिए रवाना हुआ। 


धीरे-धीरे चार साल बीत गए। श्याम की मेहनत और लगन श्याम को एक ऐसे मुकाम पर ले आई, जहाँ उसे अब पैसे की कोई कमी नहीं रह गई थी। वह उसी कम्पनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत था और कम्पनी द्वारा दिये गये फ्लैट में रह रहा था।


एक दिन दिवाकर का फोन आया और उसने श्याम का अपनी शादी की बात बताई। श्याम यह सुनकर बहुत खुश हुआ। एक हफ्ते बाद शादी थी। दिवाकर श्याम का सबसे अच्छा दोस्त था। कुछ रिश्ते सच्चे व सुन्दर होते हैं, जो वक्त की आँधियों में भी अपनी लालिमा नहीं खोते।


आज दिवाकर की शादी में जाने के लिए श्याम तैयार हुआ। काले सूट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था। अपनी कार से वह शादी समारोह वाले स्थान पर पहुँचा। दिवाकर उसे देख कर बहुत खुश हुआ। उसने उसे अपने सभी जानने वाले लोगों से मिलवाया। तभी श्याम की नजर लाल साड़ी पहनी हुई एक महिला पर पड़ी। वो और कोई नहीं उसकी माया थी, जो अपने पति के साथ दिवाकर के शादी में शामिल होने के लिए आई थी।


माया के पति ने श्याम को देखते ही ‘सर’ कह कर सम्बोधित किया। श्याम ने भी उत्तर में सिर हिलाया। माया ने अपने पति से पूछा- ‘‘ये आपके बाॅस हैं ?’’  माया श्याम से कुछ कहती, उससे पहले ही श्याम चार कदम आगे बढ़ गया।


माया ने उसे पीछे से आवाज दे कर बुलाना चाहा, पर श्याम ने ऐसा दिखाया कि वो माया को जानता ही नहीं। 


माया अब समझ चुकी थी कि श्याम अब वो श्याम नहीं रह गया था। वह बदल चुका था। अब माया श्याम के लिए एक इम्प्लाय की पत्नी मात्र बन कर रह गई थी। और ये मुलाकात माया को जीवन भर कचोटती रहेगी।