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मंगलवार, 14 जून 2016

नफ़रत

Nafrat in Hindi


बात उन दिनों की है ,जब शेखर स्कूल में पढता था। वह पढाई में बहुत ही होनहार था। उसके जीवन में एक ही शख्स था और वो थीं उसकी दादी, जिनसे शेखर बेइंतहां नफरत करता था। उसके माता -पिता के गुजर जाने के बाद दादा और दादी ने शेखर को सम्भाला। जब शेखर मात्र 7 वर्ष का था, तभी दादाजी ने भी दुनियां को अलविदा कह दिया। अब महज शेखर की दादी ही थीं ,जो शेखर का ख्याल रखतीं थी।  पर ऐसी क्या वजह थी जो शेखर अपनी दादी माँ से इतनी नफरत करता था ? उसकी वजह  दादी का एक आँख का होना था। जिसके कारण शेखर के दोस्त उसे चिढ़ाते थे। शेखर के घर कोई भी दोस्त आना नहीं चाहते थे। शेखर का  दादी के प्रति नफरत दिन -ब -दिन बढ़ता  जा रहा था ।

एक दिन शेखर अपना टिफिन घर पर भूल गया  और  दादी शेखर को टिफिन देने के लिए शेखर के स्कूल चली गईं। फिर वही हुआ जिसका शेखर को डर  था। जैसे ही दादी स्कूल में आई, शेखर को दादी के जाते  ही
 बच्चे  चिढ़ाने लगे। शेखर को यह बाद इतनी बुरी लगी कि उसने घर आकर अपनी दादी से कह दिया कि आप भी दादा जी की तरह भगवान के पास क्यों नहीं चली जातीं ? मैं आपकी शक्ल भी नही  देखना चाहता हूँ।



 शेखर ने मन ही मन में ठान  लिया कि अब वो बहुत मेहनत से पढाई करेगा और बड़ा आदमी बनेगा। दूसरे शहर जा कर अपनी दुनियाँ बसाएगा। जहाँ दादी का नामों निशान नहीं होगा। अगले वर्ष शेखर की मेहनत रंग ले आई। शेखर ने पूरे स्कूल में टॉप किया। उसे एक अच्छे शहर में पढाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिली। वह चेन्नई आ गया और पढाई पूरी करने के बाद एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उसे जॉब मिल गई ,फिर शेखर ने फ़्लैट खरीद लिया और  वही रहने लगा। अब शेखर ने जैसा चाहा था वैसी दुनियाँ बना ली थी।

दिन बीतते  जा रहे थे। एक दिन रोज की तरह शेखर की  घंटी की आवाज़ सुन कर  नींद खुली। उसने न्यूज़ पेपर लेने के लिए दरवाजा खोला तो सामने देखा कि उसकी दादी खड़ी थी। अब शेखर को ऐसा लगा जैसे मानो उसकी दुनियाँ फिर से बिखर रही हो। उसने खुद को सम्भाला और अनभिज्ञता जताते हुए कहा," आप कौन है मैं आपको नहीं जानता हूँ ,प्लीज  ! यहाँ से चले जाइये ,मुझे सोना है।" दादी  ने शेखर से कहा,"  माफ़ करना बेटा  ! ,लगता है गलत पते पर आ गई। "अपने दादी के जाते ही शेखर ने दरवाजा लॉक कर लिया।

दादी के जाने के बाद शेखर ने  चैन की साँस ली।  दादी को गए 8-10  दिन ही बीते थे कि गाँव के सरपंच के द्वारा भेजी एक चिठ्ठी मिली। शेखर ने देखा लेटर उसकी दादी का था। लेटर में  लिखा था  कि ,

"मेरे प्यारे बच्चे ! मेरी वजह से तुम्हे अब तक ना जाने कितनी जिल्लत  का सामना करना पड़ा ,मगर तुम मेरे सबसे प्रिय हमेशा ही रहे।  आज मैं  तुम्हे एक बात बताना चाहती हूँ कि मैं हमेशा से एक आँख की  नहीं थी।  जब तुम अपने माता पिता के साथ अपने दादा जी के पास शहर से गाँव आ रहे थे, तभी तुम्हारी गाड़ी का संतुलन खो जाने के कारण तुम्हारे माता- पिता की मौत हो गई। पर ईश्वर की कृपा से तुम सही सलामत बच गए।  मगर  मेरे बच्चे ! तुम्हारी आँख में चोट लगने की वजह से तुम्हारी  एक आँख की रौशनी चली गई। पर  मैं चाहती थी कि  तुम दुनियाँ को उसी रूप में  देखो,  जैसा सभी बच्चे देखते हैं और मैंने तुम्हे एक आँख देने का निर्णय किया। ताकि तुम्हे किसी के सामने उपेक्षित ना होना पड़े। तुम मेरे कलेजे के टुकड़े थे और हमेशा रहोगे। जीते जी तो कभी तुम्हारा प्यार नहीं पा सकी पर मेरे  मरने के बाद भी मैं नहीं चाहती कि तुम मुझसे  नफरत करो। क्या मेरे मरने के बाद तुम मेरी कब्र पर थोड़ी देर के लिए आ जाया करोगे ?                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 तुम्हारी बदनसीब  दादी। "

शेखर तुरन्त अपने गाँव के लिए रवाना हुआ। पर बहुत देर हो चुकी थी दादी को गुजरे 10 दिन बीत गए थे। शेखर अपने दादी की कब्र पर माफ़ी मांगता हुआ फूट -फूट  रोने लगा।

हम सभी ऐसे  ही मानसिकता के हो गए हैं। सिर्फ दूसरों की छोटी सी कमी को देखकर उस व्यक्ति का हमारे लिए किये  गए  समर्पण को  नजरअंदाज कर देते हैं। अगर हम किसी व्यक्ति के अवगुण को ना देखकर उसके भीतर छिपे गुणों को देखे तो किसी के प्रति नफरत की भावना आएगी ही नहीं। 

Image-Google

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही संवेदनशील रचना, दिशा बदलती रचना बधाई

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    1. मेरे ब्लॉग पर विचार प्रकट करने के लिए आपका आभार ...

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  2. रश्मि जी, 'कुछ अलग सा' पर आप का सदा स्वागत है

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    1. आपका विचार मेरे लिए अमूल्य है , आभार ...

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  3. उत्तर
    1. आपने मेरा पोस्ट पर अपना विचार दिया आपका आभार और दिल से शुक्रिया....

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  4. मानवीय भावनाओं को दर्शाती एक संवेदनशील रचना !

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    1. आपका कॉमेंट ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत है, कॉमेंट के लिए धन्यवाद !

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