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शनिवार, 9 जुलाई 2016

अवधारणा

Avdharna in Hindi

 जब भी किसी परिवार में लड़की का जन्म होता है, तो  परिवार के सभी सदस्य उदास हो जाते हैं। उनके चेहरे ऐसे उतरे होते हैं, जैसे कि रुपयों से भरा बैग किसी ने उनसे छीन लिया हो। और इसके विपरीत यदि घर में बेटे का जन्म होता है, तो  इस बात की खुशी सभी के चेहरे पर झलकती है। सब खुश हो जाते हैं। कैसा अन्याय है ये ! कैसी सोच है ये ! एक ही गर्भ से जन्म  लिए हुए एक माता के दो संतान के प्रति लोगो के विचार इतने अलग कैसे हो सकते हैं ?

बेटियाँ ,एक ऐसा अमूल्य वरदान होती हैं, जो हमें अच्छे कर्म करने के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। सभी को ईश्वर इतनी जिम्मेदारी के काबिल नहीं समझता और जो उनके योग्य होते हैं, उनको ही ये वरदान प्राप्त होते हैं। बेटियां बचपन से ही माँ -बाप का सहारा बन कर रहती हैं और अपने गुण और माता - पिता से प्राप्त संस्कारों को लेकर अपने ससुराल जातीं हैं और  वहाँ के परिवार को भी  सहेजती ,संभालती हैं।


ये एक अलग बात है कि हमारा भारत देश पुरुष प्रधान देश है। बचपन से ही बच्चों में जाने -अनजाने माता -पिता ये संस्कार डालते जाते हैं। जिनके परिणाम स्वरूप बच्चों के मन में यह बात बैठ जाती है। वो ये बात जान  जाते हैं कि  उनके व्यक्तित्व के हिसाब से कौन सा कार्य होता है। हम सभी ने बच्चों को खिलौनों के साथ खेलते देखा होगा, वो खेल -खेल में वही सारे कार्य करते हैं जैसा कि नित्य प्रति दिन हमें करते देखते हैं।

बच्चों का मन तो कोमल मिट्टी के  सामान होता है। हम उन्हें जिस  प्रकार का आकार देंगे, उसकी संरचना का प्रतिरूप ठीक वैसा ही हमारे सामने आएगा। हमें अपने बच्चों में बेटा -बेटी का फर्क दूर करना होगा। एक कार्य किसी एक की जिम्मेदारी है इस बात का भी त्याग करना होगा।  आज भी यदि पति घर के किसी कार्यों में अपनी पत्नी का हाथ बटाते हैं, तो उनका उपहास  किया जाता है। ऐसी मानसिकता क्यों है ? अगर महिला चार पैसे कमा कर घर के खर्च में हाथ बटा सकती है, तो फिर पुरुष घर के कार्यों में  मदद क्यों नहीं कर सकते हैं ?

आज जमाना बदल रहा है। अब वो समय नहीं रहा, जब हम स्त्री या पुरुष होने का दम्भ भरें। अब पुरुषों को अपने पुरुष होने का अहम छोड़ना होगा और स्त्रियों को खुद को अबला समझना बंद करना होगा। क्योकि कोई भी शख्स क्यों ना हो, वो क्या अकेला पूर्ण हो सकता है ? बिलकुल नहीं ! जब हम एक जीवन का अकेले निर्माण नहीं कर सकते हैं, तो फिर अहम कैसा ? हमें बनाने वाले ईश्वर ने भी हमें प्रकृति चक्र को चलाते रहने के लिए आधी -आधी शक्तियों से ही नवाजा है । फिर हम इतनी छोटी सोच क्यों रखते हैं ? स्त्री  पुरुष में ना तो कोई बेचारा और  ना ही कोई सशक्त होता है। ये दोनों एक साथ मिल कर एक अदभुत शक्ति बनते हैं, जो  समझना बेहद जरुरी है और अपने जनरेशन में भी डालना बहुत जरुरी है। तभी एक सभ्य समाज व परिवार का निर्माण होगा।

Image-Google

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन किस्‍म का लेख प्रस्‍तुत किया है आपने। आपने सही कहा कि बेटियां वरदान होती हैं। पता नहीं कुछ लोग बेटियों को अभिशाप क्‍यों समझते हैं। बेटियों से प्‍यार करने वाला व्‍यक्ति नैतिक दृष्टि से भी उच्‍च कोटि का मानुष होता हैै।

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    1. आपके विचार से मैं भी सहमत हूँ, यह जानकार बहुत खुशी होती है कि आप जैसे लोग भी है, जो उच्च कोटि का विचार रखतें हैं, कमेंट के लिए आपका शुक्रिया...

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  2. गंभीर सोच के साथ सधी हुई दिल की बाते

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    1. आपको मेरी कोशिश पसंद आई, पढ़ने के लिए आपका आभार..

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    2. आपको मेरी कोशिश पसंद आई, पढ़ने के लिए आपका आभार..

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