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रविवार, 9 जनवरी 2022

आत्म-मंथनः सफलता की कुंजी

 

AATMA MANTHAN - EK NAI DISHA

असफलता ! क्या होती है ये ? हम सभी के साथ होता है, कभी न कभी हमने इसका मुख जरूर देखा होगा। तो क्या हमें असफल होने के बाद रूक जाना चाहिए ? जिस कार्य में सफलता ना मिले, उसे छोड़ देना चाहिए या टूट कर मन को दुःखी कर उस काम को छोड़ देना चाहिए ? क्या करना चाहिए ? क्या ठीक होगा ? कौन देगा हमारे इन प्रश्नों का उत्तर ? ये बात कभी आपने सोची है। 

एक बार मैं किसी बात से नाराज होकर उदास बैठी थी, बस लगता था कि सब कुछ खतम सा हो गया, कुछ भी ठीक नहीं हो पायेगा, पर एक रोशनी की छोटी-सी किरण ने मेरी लाइफ में उजाला करने का काम किया और ये रोशनी आप सभी के जीवन तक पहुँचे, मैं यही चाहती हूँ - और ये सब हुआ एक छोटी सी पाॅजीटिव स्टोरी के माध्यम से, जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूँ।

एक बार एक कपड़ों के व्यापारी को अपने कारोबार में बहुत ज्यादा घाटा सहना पड़ा। किस्मत की ऐसी मार पड़ी कि उसके मिल में आग लग गई। सब कुछ जलकर खाक हो गया। रातों-रात करोड़ों का करोड़पति कहलाने वाला व्यापारी रूपये की मद्द के लिए दर-दर भटकने लगा। उसे कुछ भी रास्ता नजर नहीं आ रहा था। 


वो अपने मित्र के पास मदद माँगने के लिए गया। मित्र उसकी ऐसी स्थिति देखकर बहुत दुःखी हुआ। जब उस व्यापारी ने मदद माँगी तो व्यापारी के मित्र ने सोचा कि ये मेरे रूपये कैसे लौटायेगा ? मेरा पैसा भी व्यापार में डुबा देगा। वो व्यापारी के मित्र ने सोने के सिक्कों का थैला बोलकर, उसमें कंकड़-पत्थर भर कर उसे दे दिया और कह दिया कि घर जाकर इसे खोलना और 6 माह के बाद मुझे लौटा देना। 

व्यापारी अपने मित्र की उदारता देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और उत्साह के साथ वापस घर लौट गया।
व्यापारी ने सोचा कि मित्र के दिये सिक्कों को बहुत जरूरत होने पर ही खच। करूँगा और अपने व्यापार को बचे-खुचे सामानों से वापस शुरू कर दिया।

धीरे-धीरे व्यापारी ने अपने व्यापार में थोड़ा-थोड़ा कर मुनाफा कमाना शुरू कर दिया। लोग उसके काम से पहले ही परिचित थे, सो भरोसे के साथ जुड़ने लगे। शनैः-शनैः व्यापारी ने 5 महीने में अपनी कड़ी मेहनत के बल पर अपने कारोबार को वापस खड़ा कर दिया और उसने सोचा अब अपने मित्र को मिलने जाता हूँ और उसने मित्र द्वारा दिया सोने के सिक्कों का थैला उठाया, साथ में अपने मित्र को देने के लिए उपहार-स्वरूप कुछ कपड़े और मिठाईयाँ भी ले ली और मित्र के घर गया।

व्यापारी ने अपने मित्र को थैला देकर कहा- लो मित्र ! तुम्हारे दिये सिक्कों को मैंने हाथ भी नहीं लगाया। ये तुम वापस ले लो और ये उपहार भी। अपने व्यापारी मित्र के ठाठ-बाठ देख कर वो हत्प्रभ रह गया। उसने अपने व्यापारी मित्र से माफी माँगी और कहा- दोस्त ! मुझे माफ कर देना। मैंने सोचा था कि तुम्हारी स्थिति इतनी दयनीय है कि तुम मेरे र्पसे कैसे लौटा पाओगे, तो मैंने सोने के सिक्कों का थैला बता कर उस थैले में कंकड़ रखकर तुम्हें दे दिया, जिसे तुम ले गये। पर मित्र ये सब हुआ कैसे ?  तुमने वापस अपने कारोबार को कैसे बढ़ा लिया ?

व्यापारी ने उस थैले को खोला तो उसमें सिर्फ कंकड़ थे। पर वो अपने मित्र से नाराज न था। उसने कहा- मित्र ! तुम्हारे कंकड़ के थैलों में ने मेरी जिन्दगी में सोने के सिक्कों की तरह काम किया। मैं सोचता रहा जब तक बहुत जरूरत नहीं होगी, मैं थैले को हाथ भी नहीं लगाऊँगा और देखो ना ! इसकी जरूरत ही नहीं हुई और आज मैंने वापस अपने कारोबार को खड़ा कर दिया।

ऐसा कहकर, व्यापारी ने अपने मित्र को धन्यवाद दिया और अपने घर वापस लौट आया।

तो आपने देखा ! ऐसा ही होता है। हम भी ऐसा ही करते हैं। हम सोचते हैं कि सब खतम हो गया। कुछ नहीं बदल पायेगा। पर अपनी जिन्दगी में थोड़ा पाॅजिटिव सोच लाईये तो सही- ‘कुछ नहीं हो पायेगा’ के बदले ‘सब ठीक है’- ये सोच मन में लाइये और ‘कैसे इसे ठीक कर सकते हैं ?’ रास्ते खोजिये, क्योंकि दीपक तले हमेशा अंधेरा ही होता है। तो इस अंधेरे को नहीं बल्कि दीये की रोशनी को देखिये और रास्ते अगर एक हजार बन्द हो जाये तो क्या ? फिर नया रास्ता बनाईये। कभी न कभी सफलता आपको जरूर हासिल होगी।

सफलता का बस एक ही मंत्र है- हमेशा खुद पर भरोसा रखें और फिर कड़ी मेहनत में जुट जायें।

तो खुश रहें और अपनों के साथ रहें।

इस अंक में इतना ही।

Image:Ek_Nai_Disha_2022

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