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मंगलवार, 30 मई 2023

दोस्ती

DOSTI IN HINDI - EK NAI DISHA 2023

दोस्ती हमारे जीवन में बनने वाले उन सभी रिश्तों में सबसे अनूठा, एक अलग प्रकार की अनुभूति कराने  वाला रिश्ता होता है। सभी रिश्ते तो हमें बने बनाए मिल जाते हैं, पर  दोस्ती तो हम स्वयं अपने मन पसंद, दिल को अच्छा लगने वाले साथी से ही करते हैं। दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसमें ऊंच -नीच, जात-पात, गरीबी-अमीरी नहीं होती। एक सच्चा मित्र मिल जाने के बाद जीवन में आने वाली ना जाने कितनी मुश्किलों का समाधान मिलता चला जाता है। 


सबसे अनोखी होती है -- हमारे बचपन की दोस्ती। इसके क्या कहने ! इसमें हर छोटी सी छोटी चीज शेयर करने का अपना अलग ही आनंद होता है। लंच में माँ ने कितनी भी टेस्टी चीज खाने को क्यों ना दीं हों, पर दोस्त के साथ निवाला खाये बिना सब फीका लगता है। वो हमारी पानी की बॉटल, जो हम सभी दोस्तों के ना जाने कितनी बार होठों से लगकर हमारी प्यास बुझाया करती थी, ना जाने उस बॉटल में ऐसा क्या था जो, फिर भी जूठी नहीं होती थी।

दोस्तों के साथ मस्ती करना, गप्पे मारना, घूमना, पढ़ना, खाना-पीना किसे अच्छा नहीं लगता है ? शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो इस अनोखे रिश्ते से अछूता होगा। हम सभी ने, न जाने कितनी शरारतें अपने दोस्तों  के साथ मिलकर की होंगी।  क्या आपने नहीं की हैं ? मुझे पता है, बहुत की हैं। जो याद आते ही, लगता है कि, वो दिन काश ! एक बार फिर लौट आते।  मगर वास्तविकता यह है कि यादें तो बार-बार जीया जा सकता  है, मगर गुजरा जीवन नहीं लौट सकता। 

शनिवार, 8 अप्रैल 2023

परोपकार

 

PAROPKAAR IN HINDI - EK NAI DISHA 2023


ये तो हम सभी जानते हैं कि जीवन मुश्किलों का घर है। अगर हम इस सच्चाई से अनभिज्ञ रहें तो जीवन कितना आसान लगता है ! और यदि हम इस सच्चाई से परिचित हो जाते हैं, तो हमारा जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। हमारी मनोदशा भी ऐसी हो जाती है कि मानो सारी मुसीबतों का पहाड़ हम पर ही टूट पड़ा है और हम इससे शायद कभी उबर ही नहीं पाएंगे। मैंने पहले भी इस प्रकार की चर्चा अपने नन्हे से पोस्ट में की थी। आपको शायद याद भी होगा ,जो बाबा युवक को अपने सर पर पत्थर रख कर चलने को कहते हैं। क्यों याद आया ? पर इस बार मैं आपके लिए कुछ अलग लाई हूँ।


मैं जानती हूँ कि सभी के जीवन में कोई - न - कोई अपनी परेशानी होती है। कभी हम इसे चुटकियों में दूर कर लेते हैं , तो कभी यह हमारे सामर्थ्य से बाहर की होती हैं। बहुत से ऐसे भी मित्र होंगे, जो छोटी -छोटी परेशानियों से बाहर ही नहीं आ पाते हैं और इन परेशानियों के घेरे में उदास और परेशान होकर अपने जीवन को जीते जाते हैं। ये तो 16 आने सच्ची बात है कि परेशानी ना तो कभी बता कर आती है और ना ही हमारे पसन्द के मुताबिक ही होती है। और इन परेशानियों से कौन दोस्ती करना चाहेगा ? कोई भी नहीं !


क्योकि, भाई ! जिसे दोस्त बनाओगे, वो तो आपसे मिलने हर दूसरे रोज आया जाया करेगा। पर हम दूसरों की परेशानियों से दोस्ती कर लें तो ! क्या ख्याल है आपका ? यदि हम किसी की परेशानियों को समझकर,हमसे जो बन पड़े, अपने सामर्थ्य के अनुसार उसकी मदद करें तो क्या बुराई है ? आइये, हम सभी एक अनोखे मददगार के बारे में जाने !

गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

अनमोल पल

 

ANMOL PAL - EK NAI DISHA 2022

आज कल हम सभी को क्या हो गया है  ? हम सभी किस अंधी दौड़ में शामिल होते जा रहे हैं  ? हमारा सुबह उठने के बाद सिर्फ एक ही लक्ष्य हो गया है- कामयाबी और पैसा कमाना । पर क्या आपने कभी ये सोचा है कि जब हम सभी जीवन के ऐसे मोड़ पर पहुँचेंगे, जब हमें ये दोनों चीजें हासिल तो हो गई होंगी तो  फिर  हमें याद आएंगे हमारे वो बीते हुए अनमोल पल, जो हमने यूू  ही  भाग -दौड़ में गवां दिए और जब अपने बच्चों को अपनी Life Enjoy करते देखेंगे तो हमारा दिल खुद को क्या माफ़  कर   सकेगा ?


हमारे चेहरे  की सिलवटे हमसे सवाल करेंगी कि   हमने खुद के खुशियों का गला क्यों घोट दिया  ? क्या वो लम्हे हमें फिर से कोई जीने को दे सकता है  ? नहीं ना ! ये हम सभी जानते व मानते है कि कही हुई बात और बीता  हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता। तो क्या अपने और अपने दिल से अजीज लोगो के साथ हम सही कर रहे हैं ? अब कौन  सा समय निकल गया है इस भाग-दौड़  की Life में कुछ    मीठे पल  हमारे उन अपनों  के नाम कर दीजिये जिन्होंने अपने जीवन को हमारे लिए  समर्पित किया है।

 वो अपने दिल से जुड़े रिश्ते, जो हमसे कभी Salary ना ले कर सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निस्वार्थ भाव से निभाते हैं और बदले में हम उनको क्या देते हैं ? क्या हमारा फर्ज नहीं बनता है कि हम उनका ख्याल रखे  ? उनके होठों पर खुशी लाये।

ये तो सच्ची बात है कि मॅहगाई इतनी बढ़ गई है की सामान्य Income से जीवन की जरूरतें ही पूरी हो जाएँ, यही काफी है। पर खुशियाँ भी तो ज्यादा पैसो की मोहताज नहीं होती हैं। जब भी फुर्सत मिले घर में ही क्यों ना छोटी सी Party रखी जाय या Weekend पर अपनों के साथ खेल कूद या थोड़ी मस्ती की जाए।  कैसा रहेगा अपनों के साथ ये पल  ? जो हम ना जाने बर्षों से नहीं जिए। क्योकि हमारे पास Time ही नहीं है, जो हम किसी से कुछ कहे और कुछ सुनें।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

रिश्ते - नाते

 

RISHTE NAATE IN HINDI - EK NAI DISHA 2022

हम सभी ने ये बात सुनी होगी कि एक पुरुष की कामयाबी के पीछे एक महिला का हाथ होता है। वो महिला उसकी माँबहनपत्नीदोस्त या फिर टीचर हो सकती है। पर क्या आपने कभी ये कभी सुना है कि किसी महिला की कामयाबी के पीछे किसी पुरुष का हाथ है, नहीं ना ! मैंने भी नहीं सुना है। यहाँ तक कि  ये बात किसी मैग्जीन या न्यूजपेपर में भी नहीं पढ़ी। जब एक महिला  सफल होती  है तो उसका पूरा श्रेय हम उसी महिला की मेहनत, लगन प्रतिभा को  देते हैं। उसकी सफलता के पीछे किसी पुरुष का हाथ हो सकता है, ऐसी बात हमारे दिलों -दिमाग में कोने-कोने तक कही आती ही नहीं है। ना ही हम सभी ये जानना चाहते हैं।

 

जबकि बचपन से एक शक्ति हम सभी महिलाओं का साथ निभाते चली आई है। उसके  भी कई रूप है- पिता ,भाई ,दोस्त या फिर पति। ये शक्तियाँ निरन्तर सुरक्षा की दीवार बनकर सदा हमारा साथ निभाती आई हैं। हर पल हमारा ख्याल रखती हैं, चाहे कैसी भी मुश्किल क्यों ना हो ? पहले उसे इस मजबूत दीवार से टकराना होता है, उसके बाद ही वह हमारे तक सकती हैं। 

 

हम सभी अपनी माँ से बेहद प्रेम करते हैं और हमारी माँ भी हम पर अपनी ममता दिन रात लुटाती रहती है। हमने कभी भी अपनी माँ को खुद के लिए कड़क लहजे में पेश आते नहीं देखा ,कभी माँ से डांट नहीं खाई। कितनी अच्छी और लविंग होती है ये माँ। माँ के व्यवहार को हम ममता का नाम देते हैं। पर जब पिता की बात होती है तो सभी यही कहते है कि पिता हमें प्यार नहीं करते, हमेशा डांटते रहते है। हमारे हर काम में पुलिस की तरह पूछ -ताछ करते हैं। पर एक पिता की कीमत वही शख्स समझ सकता है , जो इस अमूल्य दौलत से महरूम है। 

सोमवार, 14 मार्च 2022

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय

 

NINDAK NIYARE RAKHIYE- KABIR DAS - EK NAI DISHA


"निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय"

कबीरदास जी की ये पंक्ति हम सभी ने अपने बचपन में पढ़ी जरूर होगी। पर इसपर शायद ही किसी ने गहराई से विचार किया होगा या इसपर अमल करने के बारे में सोचा होगा।

मेरी बुद्धि में ये मोटी-मोटी बातें तो घुसती ही नहीं थीं। इसमें शायद बचपन का असर था। पर आज जब मैं इन पंक्तियों के विषय में सोंचती हूँ तो मन में एक ही बात उभर कर आती है कि इतना ज्ञान आखिर उनलोगों ने कहाँ से पाया होगा, जो बातें उन्होंने अपनी कुटिया में व्यक्त की, वह संसार जगत में यथार्थ रूप में घटित हो रहीं हैं, जैसे कि वो सभी कुछ भविष्य देख कर लिख गये हों।

कबीर दास जी ने कहा है कि अपनी निन्दा करने वालों को सदैव अपने आस-पास रखना चाहिये। सच्ची बात है यह, क्योंकि यदि हमें अपने भीतर के छुपे गुणों को पहचानना है तो निन्दा करने वालों के सम्पर्क में रहने से ही ये सम्भव हो सकता है, क्योंकि गुणों की पहचान तभी होती है, जब हम अपने भीतर अवगुणों पर विजय प्राप्त कर लें।

ऐसा हम सभी के साथ होता है, जब हमें कोई अच्छी बात कहता है तो हमें अच्छा लगता है और यदि अन्य व्यक्ति हमें जरा भी पसन्द न आने वाली बात कहता है तो हम उससे किनारा कर लेते हैं और उससे दूरी बनाकर रखना चाहते हैं पर यह सही नहीं हैै। कभी-कभी हमें प्रसंशा करने वालों के साथ-साथ कुछ ऐसे अपनों की भी आवश्यकता होती है, जो हमारे भीतर छिपे अवगुणों से भी हमें परिचित कराये, ताकि हम उसे दूर कर सकें।

यदि हमें अपने-आप से और अपने गुणों से परिचित होना है, तो अवहेलना करने वालों की बातों से घबराना बन्द करना होगा। हमारी प्रसंशा करने वाले दोस्त हमें मिलते ही रहेंगे। पर जो हमारे भीतर के छिपे हुए अवगुणों से जो परिचित कराये, उन्हें भी मित्र बनाना हमारे हित के लिए होता है। 

हम सभी के भीतर गुणों की भरमार छिपी हुई होती है, जिनकी पहचान कराने में हमारे मित्र या हमारा भला चाहने वाले सहायक होते हैं। हम अपने अवगुणों को अनदेखा कर सकते हैं। पर हमारे अवगुणों की पहचान कराने वाले भी हमारी मित्र की श्रेणी में आते हैं। 

हम मानव हैं, ईश्वर ने हमें मानव-जीवन प्रदान किया है, जिसकी वजह से हम सभी में अहंकार की भावना भी समय के साथ आ गयी है।

कभी-कभी अपने गुणों पर हमें स्वयं भी अहंकार हो जाता है। हमें यह गलत एहसास हो जाता है कि हम सबसे बेस्ट हैं। सब समझने लगते हैं कि हमसे अच्छा कोई भी नहीं है, वगैरा-वगैरा।
पर यदि हमें अपने-आप को इस अहंकार की कु-मनोवृत्ति से अपने सुन्दर मन को बचाना है तो हमें अपने भीतर गुणों के साथ-साथ अवगुणों को भी स्वीकार करना होगा, उसका सामना करना सीखना होगा। 

क्योंकि कहते हैं ना, जब हम अस्वस्थ्य होते हैं तो हमें कढ़वी दवा पीनी पड़ती है और ये दवायें अपना असर दिखा कर धीरे-धीरे हमें फिर से स्वस्थ्य कर देती हैं। उसी प्रकार से अपनी सन्तान को भी सभी कढ़वे अनुभवों का सामना करने देना चाहिए, ताकि धीरे-धीरे वो भी इस जीवन के वास्तविक रूप से परिचित हो सके और जीवन का मूल्य समझ सके ।

वो एक सशक्त वृक्ष के समान अपना स्थान बनाये, जिसके अस्तित्व में दूसरे ठण्डी छाँव का अनुभव करें व किसी के काम आ सके।

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