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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

सॉरी

SORRY IN HINDI


Sorry .. एक छोटा  शब्द है , जिसका प्रयोग हर कोई जहाँ -तहाँ करता रहता है।  सब की जुबान पर 'सॉरी' जैसे रखा ही रहता है।  यह किसी हाजमे की गोली कम नहीं है ,जिसे हम ज्यादा खाना खा लेने के बाद प्रयोग करते  हैं, ठीक वैसे ही हम जब किसी से टकरा जाते हैं या जब हमसे किसी को कोई तकलीफ पहुँचती है, तो 'सॉरी ' शब्द का प्रयोग करते हैं। हम अपने गलत कार्यों और कटु शब्दों को इस तरह भुला देते हैं, जैसे की यह चीजें हुई ही न हो और वो भी  'सॉरी ' शब्द का इस्तेमाल कर के। यह शब्द किसी की भी बड़ी से बड़ी गलती की भरपाई कर देता है।  यह मेरे ही नहीं आप सभी के मन में आता होगा कि 'सॉरी 'तो बोल दिया अब क्या करूँ ? और आगे बाद जाते हैं।  उन्हें अपनी गलती पर पश्चाताप नहीं होता। क्या किसी को कष्ट पहुंचा देने के बाद 'सॉरी' के पांच लेटर काफी हैं ? 

मैं जब कभी घर से बहार निकलती हूँ , तब देखती हूँ कि  भागम -भाग भरी जिंदगी मैं किसी के पास समय नहीं है कि थोड़ा भी इन्तेजार कर सके।  आजकल की नई  पीढ़ी, जिनके माता -पिता ने  सुविधाएँ तो अपने बच्चों को दे रखी हैं यथा 12 -13 वर्ष की उम्र से ही बच्चे  दो पहिया वाहन  को जैसे-तैसे चलाते  हैं जैसे उनके माता-पिता ने उनको इन सड़कों को भी उन्हें गिफ़्ट कर दिया  है। अगर उनके इसी हरकत से किसी को चोट पहुँचती है , तो वो 'सॉरी' बोलकर आगे निकल जाते हैं।  

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

हमसफर

HUMSUFER

"हमसफ़र "- ये शब्द जब भी हमारे कानों में पड़ता है , तब हमारी नज़रों के सामने एक विशेष व्यक्ति की अलग छवि छा जाती है। अपने जीवन साथी को लेकर सबकी बहुत ज्यादा उम्मीदें होती हैं, एक ही व्यक्ति में हम सभी गुणों को तलाशने लगते हैं और जब वह हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता तो हमें बहुत निराशा होती है।  पर क्या हमें अपने हमसफ़र में ही सारे गुण चाहिए होते हैं ? हम कभी अपने गुणों या अवगुणों को क्यों नहीं विचारते ? क्या हमसे जुड़ने वाले शख्स की हमसे उम्मीदें नहीं होंगी ?  हर व्यक्ति में एक न एक गुण अवश्य होता है , जरुरत है  निखारने की। 

पड़ोस में रहने वाली कमला आंटी , जिन्होंने जब शादी की तो वह पांचवी पास थीं।  माता -पिता की सहमति से वेल एजुकेटेड लड़के से उनका विवाह हो गया।  शादी के बाद उनके पति बैंक में कार्यरत हो गए। उनका उठना-बैठना एजुकेटेड लोगों के बीच होता था। एक दिन कुछ लोग खाने पर आये।  उन लोगों ने कमला आंटी के घर की  सजावट देख बहुत तारीफ़ की और बनाये खाने को बहुत पसंद किया। मगर अपनी शिक्षा को लेकर वह बहुत उदास थीं।  उनको सभी से बात करने में असहजता महसूस हो रही थी। फिर सभी चले गए। उनके पति ने उनके हाँथ को पकड़ कर उनपर बहुत गर्व किया और कहा -"मैं बहुत नसीब वाला हूँ ,जो तुम मेरी पत्नी हो। क्या मैं तुमसे एक  बात कहूँ , मानोगी ! मैं चाहता हूँ कि  तुम अपनी पढ़ाई की  फिर से शुरुवात करो। " कमला आंटी ने हाँ कह दिया। उन्होंने अपनी छोड़ी पढ़ाई पूरी की और इण्टर के बाद करेस्पोंडेंस से आगे की पढ़ाई जारी रखी। आज वह एक प्रतिष्ठित विश्वविद्द्यालय की शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

बचपन..

BACHPAN



बचपन ! एक ऐसा शब्द है, जिसकी कल्पना मात्र से ही हर व्यक्ति के होंठों पर पर एक मुस्कान सी आ जाती है और वो मीठी यांदें ताजा हो जाती है ,जिनको हमने उन छड़ो में जिया है। हमारी माँ की हाथों की बनी मिठाईओं को, कभी माँ से  बिना बताये ले लेना ,पापा के दिए सिक्कों से मन चाही मीठी गोलिओं को खरीदना  ,बहन की चुटिया खींचनी हो या भाई के कलर पेंसिल को बिना बताये इस्तेमाल करना। वो झगड़े,रोना -रुलाना ,रूठना फिर मानना। वो नानी के घर माँ  साथ जाना और वहां के गावों में घूमना। कभी मामा  के गाड़ी की पहिये से हवा निकाल  देना। कभी मामी के बिंदी को लगा कर माँ जैसी बनाने की चाहत भुलाये नही भूलती। 

मगर आज हम उम्र के उस पड़ाव  में है, जब हमें जीवन के इस भागम-भाग भरे सफर में फुर्सत ही नही है कि  उन लोगों के बारें  में पूछें जो  कभी हमारे जीने की  वजह थे, हमारे होठों  सच्ची खुशी थे। माँ के उन पराठों का जायका हमारे पिज्जा ,बर्गर में कहाँ है। खीर क्या फ्रूट सैलट का  मजा दे सकता  है।  हमने खुद को मॉडर्न   बना लिया है ,पर  हम उन दिनों को क्या वापस ला  सकते है। मुझे  याद है जब माँ  के साथ नानी के घर जाती थी ,वहां  हमें मन पसंद की चीजे  को मिलती थी। खूब घूमना फिरना ,बे रोक -टोक कहीं  भी जाना ,दिन भर मौज मस्ती करना बहुत भाता था। मांमा  की सुनाई तोते की कहानी ,मामी जी के हाथ के  कचोरी समोसे कभी भुलाये नहीं भूलते। नानी के हाथों की सर की मालिश जैसी उन यादों की एक अलग ही छाप दिलों दिमाग में छा गई है। 

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

नारी का सम्मान

NAARI KA SAMMAN


आज कल हमारे घर के भीतर और बाहर लड़कियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं , ऐसा क्यों ? कुछ घटनायें बीते वर्ष में  घटित हुई हैं , जो इतनी घृडित  और वीभत्स  हैं ,जिसकी याद जेहन में आते ही मन सिहर उठता है।  न जाने कितनी बेटियों की इज्जत को मिटटी में मिला  दिया गया , जिससे उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी ,और तो और , समाज  में बेटियों का  इज्जत से जीने का अधिकार भी छीन लिया जाता है। हमारी बच्चियाँ आजादी से कहीं जा नहीं सकती , कौन से व्यक्ति की नियत कब ख़राब हो जाये ,कुछ कहा नहीं जा सकता।  क्या इसके लिए सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार हैं ? नहीं ! इस असुरक्षा के लिए लिए हम सभी  जिम्मेदार हैं।

आजकल , भारतीय पहनावे को  लोग भुलाकर और पश्चिमी सभ्यता के पहनावे को अपनाकर खुद को दूसरों बेस्ट दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं।माता - पिता को फुर्सत नहीं है कि वो  अपने बच्चों की  ओर ध्यान  दे सके कि हमारे बच्चे क्या करते हैं , किन लोगों के बीच रहते हैं , कहाँ जाते हैं , उनके मित्र कैसे हैं ? उनको कुछ भी जानकारी नहीं होती।  और तो और , बच्चों को उनकी जरुरत और और उम्मीद से ज्यादे सुविधायें और पॉकेट मनी दे देते हैं , जिसका बच्चे खुल कर मनचाहा दुरुपयोग करते हैं। हम अपने माता -पिता के दिए गये  संस्कारों को भूल जाते हैं. हमारे पिता जी हमारे हाथों में पैसे नहीं देते थे बल्कि हमारी सारी जरूरतें पूरी कर देते थे, और समय -समय पर रोक -टोक होती थी कि कहाँ गई थी,किसके साथ थी ? हमें बुरा भी लगता था। मगर आज जब हम समाज में बेटियों के साथ बुरी घटनाओं के घटित होने की खबर पढ़ते हैं , तो हमें दुःख होता है , पर क्या हमें अपनी सोच बदलनी नहीं चाहिये ?

बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

बेटी का दर्द


BETI KA DARD

मैं एक बेटी हूँ ,अपने माँ- पापा की, आप सभी की  तरह। मैं आप सभी से  कहना चाहती हूँ कि क्या घर और समाज में हमें वो दर्जा मिल गया है, जो हमें मिलना चाहिए और जो हर व्यक्ति का हक़ होता है। क्या बेटियों की स्थिति बदल गई है  या नहीं ? लोग तो बदल गए हैं ,मगर बेटिओं के प्रति समाज का विचार कभी नहीं बदला। मगर क्या हम वाकई में बदले हैं ? क्या हम अभी नही खुद को पुरूषों के आधीन  मानते हैं ? हमें लगता उनसे ही हमारा अस्तित्व है। किन्तु ,हमें अब अपने आपको परिवर्तित करना होगा ,खुद की एक पहचान बनानी होगी। जब बेटे  की शादी के लड़की देखी जाती है लड़की का चेहरा ,चाल ढाल , रंग ,रूप यहाँ  तक की नौकरीरत भी चाहते है।

 मगर लडके के बारे में कोई जांच पड़ताल नहीं  करता न ही कोई ये सोचता है की लड़की की इस बारे में क्या राय  है ,क्यों ? कुछ लोग ऐसे भी हुए  है, जो समाज को दिखने के लिए गरीब घर की बेटी को अपना तो लेते है मगर न उसे परिवार में  जगह देते है और न ही दिल में। और हमेशा कहा जाता है की क्या ले कर आई ? मगर कोई ये नहीं समझता कि वो क्या छोड़ कर आई है। यहाँ तक ये सभी लोग लड़की को पसंद करने से पहले पूरी तरह से आस्वस्त होना चाहते हैं , मगर ये कोई नहीं देखता की हमारी क्या  एक्सपेक्टेशन है, हमसे शादी से पहले हमारी पसंद को नजर अंदाज़ कर दिया जाता है।  लड़के का ,  जमींन , रुपये से सम्पन्नता  ही क्या  एक लड़की के सुखी जीवन  के लिए काफी है ?