वफ़ा क्या होती है ? क्या हम इसे भली -भाँति समझते हैं ? दूसरों का ख्याल रखना ,बात को मानना या फिर प्रेम को जाहिर करना, क्या इसी को वफ़ा कहतें हैं ? कुछ लोग सामने वाले की नाराजगी और घृणा को सह कर भी अपनी वफ़ा को प्रदर्शित करते हैं। मगर मैं नहीं मानती ऐसे वफ़ा को। क्योंकि हम इंसान हैं। हमें हक़ है अपने बारे में सोचने का। हमारे पास ईश्वर की कृपा से मस्तिष्क रूपी यन्त्र है, जिसके द्वारा हमें सही और गलत के फर्क का ज्ञान होता है।
मगर वो बेजुबान, जिनको ईश्वर ने जुबान भी नहीं दिया और जो अपनी भावनाओं को कह कर व्यक्त भी नहीं कर सकतें हैं , उनके बारे में हमनें क्या कभी सोचा है ? हमने अक़्सर फल मंडी,सब्जी मंडी, बाजारों में जानवरों को फलों -सब्जियों में मुँह लगाने पर मार खाते देखा होगा। दुकानदारों के हाथों में जो कुछ भी आता है, वो उसी से मारने लगतें हैं - कभी -कभी जानवरों के पैर टूट जातें हैं ,और चोट खाने से उनकी त्वचा तक फट जाया करती है। वो कुछ कर नहीं पाते।
हमने कभी सोचा है कि क्या वो भी हमारी तरह ऑफिस जा कर कमा सकते, तो यूँ बिना पैसे दिए हमारी चीजों पर क्यों मुँह मारते ? हममें से ही कुछ लोग ऐसे हो गए है, जो इंसान का जन्म पाने के बाद भी चोरी करते हैं। क्या कभी आपने जानवरों को चोरी करते या डाका डालते या फिर खून करते सुना है ? मैंने तो नहीं सुना है।
मेरे घर के ठीक सामने एक राय अंकल का परिवार रहता है। उनके परिवार में एक ही छोटा बच्चा था। उसके साथ खेलने वाला कोई नहीं था।राय अंकल ने सोचा की बच्चा बहुत उदास रहता है , तो अंकल एक कुत्ते के बच्चे को खरीद कर घर ले आये।अब वह बच्चा दिन रात उस कुत्ते के बच्चे के साथ खेलता रहता था और बहुत खुश रहता था। राय जी ने उसे सारी अच्छी आदतें सीखा रखी थीं, जिससे वो जहाँ -तहाँ गन्दगी नहीं करता था। 6 महीनें बीत गए थे। अब कुत्ते का बच्चा बड़ा हो गया था सभी उसे शेरू कहते थे।
एक रात की बात है, शेरू के रोने की आवाज से हम सभी बहुत परेशान थे। उसकी रोने की आवाज से घर का कोई सदस्य सो नहीं पा रहा था।और जब मैं सुबह टहल रही थी, मैंने देखा उस कुत्ते के पैर में पट्टी बंधी थी और उसकी आखों से पानी निकल रहा था, जैसे वह रो रहा हो। मैंने ये बात अपनी माँ को बताई। माँ ने कहा," जाने दो। " मगर मुझे ये बात बहुत परेशान कर रही थी। फिर जैसे ही राय आंटी के घर पर काम करने वाली हेल्पर दिखी तो मैंने उससे पूछा, तो उसने बताया कि कल शेरू और उनका बच्चा साथ खेल रहे थे। तभी शेरू सोफे पर चढ़ गया और सोफे पर नया कवर लगा था वो थोड़ा गन्दा हो गया। फिर उनकी बहु ने लोहे की जंजीर से उसको बहुत मारा उसी वजह से उसको चोटें आई हैं ।
मुझे उनकी बहु की हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि मैं नहीं बता सकती हूँ। उस बेजुबान को इतनी सी छोटी गलती के लिए इतनी बड़ी सजा देना क्या उचित था ? अगली सुबह मैंने देखा कि फिर उसी दरवाजे पर लड़खड़ाते चाल से शेरू पहरेदारी कर रहा था ,मानो उसके पैर में चोट लगी ही न हो।वह उनके बच्चे के साथ खेल भी रहा था। सच में, कितने लोग ऐसे होंगे ,जो जानवरों को पाल तो लेते हैं ,मगर उनके प्रति संवेदनाएं नहीं रखते ? मुझे उस कुत्ते की वफादारी ने सोचने पर विवश कर दिया कि क्या हम ऐसी वफ़ा किसी के प्रति कर सकते हैं ?
इसी वजह से वफ़ादारी के लिए हमेशा कुत्तों का ही जिक्र होता है , जो अपने मालिक के प्रति मरते-दम तक वफादारी निभाते हैं। हम किस तरह के प्राणी हैं , जो सभी गुणों से संपन्न तो हैं, मगर संवेदनाओं से अछूते हैं।
Image-Google
Image-Google
Nice post..
जवाब देंहटाएंNice post..
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया
हटाएंaapka post bahut achcha lga, ham insano me bhi bahut se aise log hote hai jo janm to insano ka pa gaye hai par harkte janvaro se bhi buri karte hai.
जवाब देंहटाएंआपके विचार मेरे विचारों से बहुत मेल खाते हैं, पढ़ने के लिए धन्यवाद !
हटाएं