ऐसा हम सभी के साथ होता है कि हम जब कुछ अच्छा करते हैं तो हमारे दिल में एक अलग प्रकार की सुख की अनुभूति होती है और जब गलत करते हैं , उस वक़्त उस पल जरूर हमारे मन को थोड़ा अच्छा लगता है ,लेकिन जीवन में जब हमारा किसी परेशानी से वास्ता होता है तो हमें पहले की हुई गलती का पश्चाताप होता है ,जिसे हम कभी भी पीछे जाकर सुधार नहीं सकते।
इस बदलते ज़माने के दौर में जहाँ लोग रिश्तों को फायदे से तोलने के बाद बनाते हैं , रिश्तें के अपनापन में पुश्त - दर -पुश्त बदलाव आता जा रहा है। पहले के लोग रिश्ते के प्रति इमोशनल होते थे। फिर एक दौर आया, जब लोग रिश्तों को प्रेक्टिकल हो कर देखने लगे कि किन रिश्ते को जोड़ने में हमें फायदा होगा उसी से खुद को जोड़ने लगे। आज -कल की सोच तो सबसे ज्यादा स्वार्थ पूर्ण हो गई है। आज के युग के लोग किस रिश्ते में कितना प्रतिशत फायदा पहुंचेगा ये सोच कर बनाते हैं।
क्या भावना किसी के हाथ की कठपुतली है कि जैसे जी चाहा उसका डोर वैसे ही खींचेंगे ? खैर इस पर जितनी चर्चा की जाय कम है। आज मैं किन बातों को लेकर बैठ गई और सोच के किस समंदर में डूब गई और उसके छीटें आप सभी पर पड़े। माफ़ कीजियेगा !
हममें से ही बहुत सारे लोग ऐसे होंगे, जो राह चलते या फिर कोई जरूरत मंद दिखे ,तो उसकी मदद कर दिया करते हैं और ऐसा वो किसी को दिखाने या फिर स्वर्ग का रास्ता बनाने के लिए नहीं करते हैं, बल्कि ये लोग खुद ही इतने कष्टों को सह कर सफलता अपने सामर्थ्य और मेहनत के बलबूते पर हासिल किये होते हैं कि उनको दूसरों के दुःख दर्द का अहसास होता है।
मैं यहाँ सभी से कहना चाहूंगी कि यदि हम किसी की मदद करते हैं ,उससे दुआ -थैंक्यू लेने के बजाय एक वादा लेना चाहिए कि जीवन में यदि उसके सामने ऐसा व्यक्ति आये जिसको मदद की जरूरत हो तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसकी मदद अवश्य करे और फिर यही मदद का वादा वो जिसकी मदद करें उससे लें ।
इस प्रकार ना जाने कितने हाथ ऐसे हो जायेंगे जो एक दूसरे का सहारा बन जायेंगे ,और ये बन जाएगी मददगारों की ऐसी चेन जो आगे कभी भी आगे कोई मदद का मोह ताज नहीं रहेगी और ना ही होगा कोई भी कमजोर हाथ ,सभी के हाथ में एक शक्ति होगी, दिल में दूसरों की मदद कर पाने के सामर्थ्य की तसल्ली व होगी सुकून भरी नींद जो खुले आसमान में सितारों को देखते हुए सोने में होती है। जहाँ नजरों का कोई बंधन नहीं होता है और ना ही कोई सीमा होती है।
बात उन दिनों की है जब मेरे कॉलेज की छुट्टी थी तो मैं और मेरी बहन आपस में खट्टी -मीठी नोक झोक कर रहे थे। तभी एक आवाज हमारे कानों में पड़ी ,हमने जब खिड़की खोली तो सामने बेहद ही बुजुर्ग व्यक्ति थे जिनका पूरा शरीर कमजोर और वह अपने शरीर पर ठीक से खड़े भी नहीं रह पा रहे थे। हमने उनसे पूछा क्या बात है बाबा, तो बुजुर्ग ने हमसे भूख लगने की बात को कहा। हमने सोचा की चलो 5 -10 रूपये दे देते हैं ,पर जानते हैं उन बाबा ने क्या कहा उन्होंने कहा कि बेटी रूपये मत दो। रोटी हो तो दे दो। मेरे शरीर में ताकत नहीं है, जो रोटी खरीदकर खा सके। फिर हमने उनको रोटी दी। संजोग से सब्जी नही बची थी तो आचार ही दे दिया। बाबा ने हमारे सामने ही बैठकर रोटियाँ खाई और थोड़ी देर बाद वहाँ से चले गये।
हमें उस दिन इस बात का अहसास हो गया कि जिनको सच में भूख होती है, वो रूपये नहीं माँगते हैं क्योकि रुपया तो वस्तु प्राप्ति का साधन मात्र है सच्ची भूख तो रोटी -दाल से ही मिटती है। सच है ! हमारी भूख हमें कुछ भी करने के लिए हमें कितना मजबूर कर देती है ?
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nice post
जवाब देंहटाएंकमेंट के लिए शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया ....
हटाएंBEHTREEN AALEKH
जवाब देंहटाएंविचार प्रकट करने के लिए आपका आभार...
हटाएंप्रभावशील लेखन , साभार !
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद
हटाएंबहुत ही दिल को छू जाने वाली पोस्ट रश्मि जी काश सब लोग समझ पाते एक भूखे इंसान की भूख
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल ठीक कहा, अपने भूख की पहचान तो सभी कर लेते हैं, पर दूसरों के भूख की पहचान कर मदद करना हमारा कर्तव्य और मानवता है. कॉमेंट के लिए आपका आभार !
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