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शनिवार, 18 जून 2016

अपरिपक्वता

Aparipakvata in Hindi

हमने बच्चों को अक्सर खेलते हुए देखा होगा। कितनी ऊर्जा होती है उनके भीतर ! दिनभर हँसते  मुस्कुराते रहते है। उनके नन्हे कदम दिन-रात दौड़ते रहते हैं,फिर भी नहीं थकते। बच्चों के चेहरे देखकर ऐसा लगता है, जैसे ईश्वर ने उन्हें सारी खुशियाँ दे दी हैं। वो कितनी सुकून भरी जिंदगी जीते हैं ! बच्चों के वह खेल -खिलौने, वह बोतलों के ढक्क्न ,वह माचिस की डिबिया ,वो नन्हे बर्तनों का पिटारा ,छोटी सी कार जिसमें दुनियाँ की सैर करते रहते हैं। बच्चों का जीवन भी क्या जीवन होता है ! हर कार्य को करने का कितना उत्साह भरा होता है उनमें !  पर ये ऊर्जा बड़े हो जाने पर कहाँ  खो जाती है ? 

हमने नन्हे बच्चे को देखा होगा,  जो अपने पराये का भेद नहीं जानते। जरा सा किसी का इशारा क्या मिला, खिलखिला कर हँस देते हैं। वो मासूम मुस्कराहट ऊँच -नीच ,गरीबी -अमीरी ,अपने -पराये से कितनी अछूती है। और हम बड़े जब भी किसी से बात करते हैं, तो हम हमारे मन में मंथन करते रहतें हैं कि वह कैसा है ? हमारा क्या लगता है ? उसका स्टेटस कैसा है ? वगैरा -वगैरा। 

हम भी काश उन नन्हे बच्चों की तरह मासूम व स्वच्छ सोच रख पाते। ये नन्हे बच्चे हर कदम पर हमें ना जाने कितना कुछ सिखा जाते हैं । आपस में लड़ते -झगते हैं, फिर अगले ही पल सारी बातों को भुला कर ऐसे घुलमिल जाते है, जैसे कि  उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं।


हम बड़े इतने बुद्धिमान ,परिपक्व हो जाने के बावजूद, अगर हमें  किसी ने जरा सी ऐसी बात कह दी, जो हमें पसंद नहीं आई, तो नाराज होकर बैठ जातें हैं।   दोबारा उन रिश्तों की तरफ मुड़ कर देखना भी नहीं चाहते हैं। हम बच्चों को हमेशा नासमझ समझते रहते हैं। पर क्या बच्चे सचमुच नासमझ होते हैं ? हमारी समझदारी से बेहतर उनकी नासमझी है, जो हमें पल भर में दूसरों को माफ़ कर दुबारा प्रेम करना सिखा जाते हैं।

बात चंद हफ्ते पहले की है।  मेरे घर गर्मी की छुट्टी मनाने बच्चे आये थे। उसी शाम मेरे घर पर काम करने वाली महिला भी अपने दो नन्हे बच्चों के साथ काम करने आई। हम सभी नाश्ता कर रहे थे। हमने उस महिला को अपने बच्चों के साथ गैलरी में बैठने को कह दिया ,और सभी नाश्ता -चाय में मशगुल हो गए। फिर क्या था ! हम सभी की नजर घर के सबसे छोटे बच्चे पर पड़ी। वह अपनी प्लेट कही ले जा रहा था। हमने उसे डांटा और उसे रोकने के लिए पीछे गए। तो देखा कि वह बच्चा काम करने वाली महिला के बच्चों के साथ अपना नाश्ता शेयर करने लगा। हमने उस बच्चे  को डांटा। फिर दूसरी प्लेट में काम वाली के बच्चों को खाने को दिया।

और जब मैं अकेले में बैठी तो सोचने लगी- आज जो काम 3 वर्ष के बच्चे  किया ,ऐसा हम  सभी क्यों नहीं कर पाते  हैं ? वो निष्छल सोच हम सभी के अंदर  क्यों   नहीं आती है ? ऐसा इसलिए है, क्योंकि  हमने खुद  अपने आगे -पीछे, ऊँच -नीच ,अमीरी -गरीबी का ऐसा  घेरा बना लिया है कि जिसे तोड़ पाना  सम्भव नहीं है। क्योकि अब  हम नासमझ थोड़े ही  रहे, जो ऐसा  करेंगे ! अब तो हम समझदार हो गए है ,बेहतरीन समझदार। 

Image-Google

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। मुझे बहुत अच्‍छी लगी।

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    1. आपके विचार मेरे लिए अमूल्य हैं, कॉमेंट के लिए आपका आभार !

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  2. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। मुझे बहुत अच्‍छी लगी।

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  3. Sundar Ati Sundar. Ye baat Satya hai ki Jo insan saral swbhaw ka hota hai. Use aaj bhi log bewkuf ya nadan ki sangya de dete hain. Aur jo apne swarth ke prti vashibhut hokar kisi ka bura bhi kare to usko chatur ''Hoshiyar'' ki sangya di jati hai.

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    1. मेरे ब्लॉग पर अपना बहुमूल्य विचार प्रकट करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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