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रविवार, 1 अगस्त 2021

परवरिश

 

PARVARISH EK NAI DISHA IN HINDI



आज मैं आप सभी के समक्ष एक ऐसी स्टोरी लेकर आई हूँ जो हमारे परवरिश पर एक प्रश्न-चिह्न लगाती है। आइये पहले स्टोरी जानते हैं, आगे की बात बाद में करते हैं-


शैली एक बेहद  आधुनिक विचारों वाली महिला थी। उसे अपने स्टेटस, नाम, शोहरत से बेहद प्यार था। उसने शादी भी अपनी पसन्द से एक फोटोग्राफर से की थी। माता-पिता के मना करने के बावजूद उसने ऐसे व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाया था, जो उसे सूट करता था। अत्याधुनिक पाश्चात्य ड्रेस, विदेशी रहन-सहन, क्लब एवं बार में जाना, ताश खेलना, ड्रिंक करना तो जैसे उसकी दिनचर्या का हिस्सा ही थे। 


शैली एक बार क्लब में बैठी पत्ते खेल रही थी कि अचानक उसके फोन की घण्टी बजी। शैली ने खीजते हुए कहा- जब मैं बिजी होती हूँ तभी ये फोन बजता है। फिर न चाहते हुए उसकी किट्टी पार्टी की सहेलियों के कहने पर उसने पर्स से मोबाइल निकाला और  देखा तो उसमें एक अन्जान नम्बर शो कर रहा था। शैली ने न चाहते हुए फोन को उठाया। फोन पर कोई लड़की बात कर रही थी। उसने शैली से पूछा- आप शैली आण्टी बोल रही हैं न ? शैली ने ‘हाँ’ कहा, तो उस लड़की ने बताया- मैं सैमू की दोस्त बोल रही हूँ। सैमू की हालत बहुत खराब है। आप यहाँ आ जाइये। 


शैली तुरन्त ही वहाँ का पता लेकर बताये पते पर पहुँच गई। वहाँ पहुँच कर शैली के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। शैली ने अपनी बेटी को नशे में चूर पाया और उसके आस-पास सिगरेट के टुकड़े पूरे कमरे में बिखरे हुए थे। शैली ने तुरन्त सैमू को नींबू पानी उसके दोस्तों से मँगाकर पिलाया। वो जानती थी कि अगर नशे का असर कम हो सकता है तो वो नींबू पानी से ही कम हो सकता है। 


सैमू अभी पूरी तरह होश में नहीं आई थी, पर उसने आँख खोलकर अपनी माँ को देखा। शैली के होठों पर थोड़ी मुस्कुराहट आ गई। शैली समझ गई थी कि अब सब ठीक है। स्थिति नियन्त्रण में है। उसने सैमू को उसकी दोस्तों की मदद से सहारा देकर गाड़ी में बिठाया और घर लेकर आ गई। घर पहुँच कर उसने सारी बात अपने पति को बताया। 


माता-पिता दोनों बहुत परेशान थे। वे अपनी बेटी से जल्द से जल्द बात करना चाहते थे। शैली सैमू के लिए बहुत परेशान थी। 'सैमू को जबरन ड्रिंक किसने पिलाया या कहीं नशे में उसने कुछ... ?' वो इसी सोच में डूबी थी कि उसके पति ने उसे आवाज दी- सैमू को होश आ गया है, शैली, जल्दी आओ ! 

शनिवार, 20 मार्च 2021

तपिश की ठंडक

 

TAPISH KI THANDAK IN HINDI


मैं इस पोस्ट के द्वारा आप सभी के समक्ष एक बहुत महत्वपूर्ण टाॅपिक पर अपनी बात रखना चाहती हूँ , जिस पर हम सभी कभी ध्यान नहीं देते हैं या इस पर किसी के द्वारा कही गई बात अथवा सलाह शायद हमें अच्छी नहीं लगती है। हम सभी ने अपने बचपन में अपने माता-पिता को हमारी बहुत सारी महत्वपूर्ण माँगों के लिए अवश्य ही उन्हें न कहते पाया होगा, कभी दोस्तों की अच्छी चीजों को अपने पास भी होने की चाह में पिता के द्वारा मना कर देने से उन पर कभी हम क्रोधित भी हुए होंगे तो कभी दुखी। 


कभी उनकी  बिना वजह की रोक-टोक, तो कभी नाहक नाराजगी भी अपने ऊपर देखी होगी, जो हमें कभी पसन्द नहीं आई। माँ की डाँट में ‘फिक्र‘ और पिता के डाँट में ‘हमारे जीवन को सुन्दर और बेहतर बनाने की सीख‘ को हम हमेशा नजरअंदाज कर देते थे, पर उन बातों में हमारे लिए पूरे जीवन को मुश्किलों से लड़ने की जो सीख होती है, ये हम नहीं समझते हैं।


मैं अपने जीवन के तजुरबे से कह सकती हूँ कि हम सभी के माता-पिता ने हमारे लिए जो कुछ किया, हमें उसके लिए उन्हें दिल से धन्यवाद कहना चाहिए, ना कि उन्हें दोषी ठहराना चाहिए। 

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

अस्तित्व

Astitva in Hindi

आज मैं आप सभी के समक्ष ऐसी बातें रखना चाहती हूँ, जो बेहद ही संवेदनशील है, जिन पर रखे गए विचार शायद कुछ लोगों को पसंद ना आये। पर मैं अपनी बात इस विषय पर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपने विचार  रख रही हूँ, जिसे आप सभी को समझना और उसके भीतर छिपे विचार की गम्भीरता पर सही समय पर सार्थक कदम  उठाना,  बेहद जरूरी  है।

हर माता - पिता के लिए उसकी संतान अमूल्य वरदान होती है , जिसके जीवन को वह अपने हाथों से सजाते हैं व पूर्ण जिम्मेदारी के साथ उनका ख्याल रखते हैं। एक पल भी अपने आप से जुदा नहीं होने देते हैं। अपने संतान की छोटी से छोटी जरूरत को पूरा करना अपना उत्तरदायित्व समझते हैं और उनकी  बड़ी से बड़ी फरमाईश को पूरा करने में अपना जी जान लगा देते हैं। संतान के आँखों में एक आँसू का कतरा भी आये, ऐसा उन्हें गवारा नहीं होता।  यहाँ मैं आप सभी से पूछना चाहती हूँ  कि जिस संतान का हम पूर्ण रूप से ख्याल रखते हैं, क्या हम ऐसा व्यवहार करके उनके साथ धोखा नहीं कर रहे ?  क्या हमने इस बात को कभी सोचा है कि जिस दिन हम  अपनी संतान को छोड़ कर दुनियाँ से रुखसत होंगे, उस दिन क्या वही संतान अपना जीवन जीने में समर्थ हो सकेगी, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकेगी ? जिस संतान को हम दुःखों की धूप से बचाकर रखते है, वह क्या हमारे ना रहने पर दुखों और मुश्किलों की धूप से ठण्डी छाँव  की तलाश करने में समर्थ हो पायेगी ? कभी नहीं।