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बुधवार, 21 जुलाई 2021

मेरी रसोई से-5

MERI RASOI SE-5


जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ये बारिश का मौसम है तो कुछ न कुछ खाने की इच्छा होती ही रहती है। कभी-कभी तो मन करता है कि बस कुछ झटपट से बन जाये, तो हम किचन में पकौड़े बनाने चले जाते हैं पर हर दिन पकौड़ी खाना क्या एक हेल्दी आप्शन है ?  नहीं न। 


तो आज मेरी इस नई रेसिपी ‘हरियाली चाट’ को ट्राई करते हैं, जो हेल्दी होने के साथ ही साथ टेस्टी भी है।


आइये शुरु करते हैं-


सामग्री-

20 पालक के पत्ते
1 और 1/2 कप चने का आटा
1/4 चम्मच हल्दी
1 और 1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर
1 उबला आलू कटा हुआ
1/2 छोटा चम्मच अजवायन
1 कप दही
3 बारीक कटे हुए प्याज
4 बड़े चम्मच खजूर-इमली की चटनी
4 बड़े चम्मच हरी चटनी
2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर 
1/2 कप सेव
नमक स्वादानुसार
काला नमक स्वादानुसार।


विधि-
 

एक बाॅउल में चने का आटा लें। इसमें नमक, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, अजवायन डालें और अच्छी मात्रा में पानी डाल दें, जिससे कि इसका बैटर पतला हो जाये। इस बैटर को कुछ देर  छोड़ दें।


अब मीडियम साइज के पालक के पत्तों को धोकर अलग रख लें। दही को कपड़े से बाँधकर टाँग दें, जिससे उसका अतिरिक्त पानी निकल जाये । इस दही को एक बाॅउल में डालें और पिसी चीनी डालकर अच्छे से मिला लें।


अब एक कड़ाही में तेल गरम करें। पालक पत्तों को बैटर में डालकर उसे भूरा होने तक फ्राई करें। फ्राई हो जाने के बाद इसे किसी सोखने वाले कागज पर निकाल लें। सर्व करने  से पहले इसे दो हिस्सों में काट दें। 


अब एक प्लेट में पत्तों के पकौड़ों को रखें। ऊपर से टमाटर-प्याज व एक चम्मच दही डालें। फिर सारी चटनियों को एक-एक करके डालें। उसके बाद ऊपर मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, काला नमक छिड़कें। इसको अच्छे से सेव से ढ़क दें। 


अब पकौड़ों को दो-तीन हिस्सों में काटकर इसके ऊपर रखकर गरमा-गरम  तुरन्त सर्व करें। 


 Image:Google

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

प्रारब्ध

 

PRARABDH IN HINDI


रीना आज  बेहद खुश थी। वह विनोद से मिलने जा रही थी। पहले कभी उसने विनोद को नहीं देखा था। उसकी दोस्ती फेसबुक पर हुई थी। पहले जान-पहचान, फिर दोस्ती और बाद में, रीना व विनोद मन ही मन एक दूसरे को चाहने लगे थे। 


रीना लाल सूट में नेट के दुपट्टे के साथ बेहद खुबसूरत दिख रही थी और उसने विनोद से सुबह 11 बजे मिलने को बुलाया था। 9 बजे से ही रीना तैयार हो कर घड़ी को देख रही थी पर समय तो बीतने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब 11 बजने में 20 मिनट ही रह गये थे। रीना ने सोचा थोड़ा समय से पहले ही चली जाती हूँ, कहीं रास्ते में ट्रैफिक न मिले। रीना ने पर्स उठाया और अपनी स्कूटी पर निकल पड़ी। 


रीना अभी थोड़ी देर ही चली थी कि उसे सामने ब्लू शर्ट में खड़ा एक नौजवान दिखाई दिया। वो नौजवान बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला था, जिससे रीना न चाहते हुए भी अपनी नजर नहीं हटा पा रही थी। उसने अपनी स्कूटी रोकी और विनाद को फोन मिलाने लगी। पर आश्चर्य की बात थी, घण्टी रीना के सामने खड़े लड़के के फोन पर बजी। 


रीना अब समझ चुकी थी कि यही विनोद है। विनोद भी रीना की सुन्दरता और सादगी पर मोहित हो गया। बात काॅफी से शुरू हुई पर उसकी मिठास दोनों के दिलों में समा गई।


अब दोनों किसी न किसी बहाने मिलने लगे और एक दूसरे के साथ जीवन बिताने का सपना देखने लगे। विनोद ने अपने माता-पिता से रीना को मिलवाया। विनोद के पैरेन्ट्स ने रीना को बहुत पसन्द किया। रीना ने भी विनोद को अपने मम्मी-पापा से मिलवाया। अब दोनों को शादी के लिए घरवालों की रजामन्दी मिल गई थी। अब बात कुण्डली मिलान की थी तो विनोद के घर पर रीना के माता-पिता और रीना सभी इकठ्ठा हुए।


शनिवार, 3 जुलाई 2021

परिवर्तन

PARIVARTAN IN HINDI



रवि और दिवाकर बहुत ही अच्छे दोस्त थे। अपना हर सुख-दुख एक दूसरे के साथ बाँटते थे, एक साथ समय बिताते और ऐसे ही एक दूसरे को जानते हुए उन्हें बीस वर्ष हो गये । ये बचपन के दोस्त जो थे। अब एक ही कम्पनी में जाॅब भी करते थे। पर एक दिन दिवाकर के मोबाइल में एक लड़की की तस्वीर देखकर रवि हैरान रह गया। उसने दिवाकर से प्रेम -प्रसंग छुपाकर रखने के कारण थोड़ा गुस्सा भी दिखाया। पर दिवाकर ने कहा- "मैंने इसकी थोड़ी मदद कर दी थी तो बस दोस्ती हो गयी, यार रवि जब कुछ ऐसा होगा तो, मैं सबसे पहले तुझे बताऊँगा।" 


पर रवि की आँखों में उस लड़की का चेहरा समा गया था। मन ही मन वो उसे चाहने लगा था। फिर एक दिन अचानक उस लड़की से रवि की मुलाकात हो गई। 'माया' नाम था उसका। वो किसी से ज्यादा मेल-मिलाप ना रखने वाली लड़की थी। पर दिवाकर का नाम सुनकर दोस्ती करने को तैयार हो गई और यह दोस्ती धीरे-धीरे कब प्यार में बदल गई ये रवि और माया दोनों को ही पता नहीं चला। 


एक दिन रवि ने माया से अपने दिल की बात कह दी पर माया ने शादी की बात को टाल दिया। फिर एक दिन अचानक लखनऊ जाने की बात कह कर चली गई और फिर उसका कोई अता-पता नहीं चला। रवि ने दिवाकर से अपने और माया के बारे में सारी बात बता दी तो दिवाकर से उसे उस कम्पनी का नाम और फोन नम्बर मिला जहाँ माया काम करती थी। कम्पनी ने उसे माया के घर का नम्बर दिया। रवि ने उसे घर पर फोन किया तो माया ने फोन उठाया और उसने कहा कि उसके पापा को हार्ट अटैक आया है और बीमार  हैं। वो उसकी शादी अपने दोस्त के बेटे के साथ जल्दी कराना चाहते हैं, जो एक अच्छी जगह पर जाॅब करता है। उसकी सैलरी बहुत अच्छी है, घर बहुत बड़ा है।  माया उस अन्जान शख्स के तारिफों के पुल बाँधती रही और रवि सुनता रहा। 

बुधवार, 23 जून 2021

अभिलाषा

 

अभिलाषा


सच कितना सुन्दर है यह हमारी अभिलाषा पर निर्भर करता है। पर कभी-कभी इसके परिणाम बहुत कष्टकारी हो सकते हैं। क्या हमनें कभी अपने चाहतों पर लगाम लगाई है ? शायद नहीं। दूसरों के अच्छे कपड़े देखे तो बढ़-चढ़ कर खरीदारी की। बड़ी गाड़ी देखी तो उसे पास होने की चाहत की। कोई नया मोबाइल देखा तो उसे पाने की चाहत की। और न जाने क्या-क्या ? 


ये चाहत रुपी राक्षस हमारे मन और दिलो-दिमाग पर इस प्रकार वार करता है कि हमें खुद भी समझ में नहीं आता कि हम न चाहते हुए भी कई बार शापिंग-माॅल से ऐसी कई चीजों को घर पर उठा लाते हैं, जिसकी ना तो हमें आवश्यकता होती है और ना ही जिन्दगी में जरुरत।


इसी ‘अनचाही अभिलाषा’ पर आप सभी के सामने प्रस्तुत है, एक छोटी सी स्टोरी, जो इसकी निरर्थकता को व्यक्त करती है।

शनिवार, 12 जून 2021

प्रतिबिम्ब

प्रतिबिम्ब


रावी आज सुबह से ही अपने खिड़की पर खड़ी होकर बाहर देख रही थी। आज उसे बाहर का मौसम बहुत ही सुहाना लग रहा था। तभी किसी ने उसे पुकारा, ‘‘रावी ! क्या बात है मैडम, कब तक इस मौसम का अकेले-अकेले लुफ्त उठाईयेगा ?’’ अचानक उसकी तन्द्रा टूटी। उसने पीछे देखा । ये कोई और नहीं बल्कि उसका पति विजय था। रावी को धीरे से विजय ने पकड़कर कुर्सी पर बिठाया और प्यार से थोड़ी डाँट लगाई, ‘‘डाॅक्टर ने आपको चलने-फिरने व बहुत देर तक खड़े रहने को मना किया है। आप को जो कुछ चाहिए, बस फरमाइये, बंदा आपकी खिदमत में लेकर हाजिर हो जायेगा।’’ 


विजय की ऐसी बातों से रावी के होठों पर मुस्कुराहत आ गई। विजय ने सूप के बाउल को हाथों से उठाया और रावी को एक चम्मच सूप पिलाना चाहा । रावी की आँखों में आँसू आ गये। आखिर क्या वजह थी कि रावी के इन आँसुओं की ?

 आइये पीछे की कहानी जानते हैं।


रावी बचपन से ही बेहद खुशमिजाज व खुबसूरत दिखती थी। उसने अपनी माँ की तरह हर चीज को सुव्यवस्थित रखना सीखा था। उसे वो हर चीज जो खूबसूरत व अच्छा दिखती थी, बहुत पसन्द आती थी। किसी भी चीज में जरा सी खामियों से वह चिढ़ सी जाती थी। यहाँ तक कि उसके कितने ही प्रिय खिलौने ही क्यों न हों,  जरा सा दाग या धूल लगने पर वह उसे फेंक दिया करती थी। रावी के माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे। जो भी चीज उसे पसन्द आती थी वे उसे वह चीज लाकर दे देते। 




रावी दिन-प्रतिदिन बड़ी होती गई और वह पहले से भी ज्यादा खुबसूरत और स्मार्ट दिखने लगी थी। उसने सभी दोस्त ऐसे बनाये थे, जो दिखने में उसके रंग-रूप व पहनावे के अनुरूप थे। रावी अब विवाह के योग्य हो गयी थी। एक से एक बड़े घरों के रिश्ते आये, मगर रावी को किसी में  कुछ कमी नजर आती तो किसी में कुछ, जिसकी वजह से उसकी उम्र भी बढ़ती जा रही थी और साथ ही साथ उसके पिता की चिन्ता।