"माँ" एक ऐसा शब्द है,जो बच्चे के मुख से निकलने वाला पहला शब्द होता है। उसके लिए अपनत्व का पहला अहसास, जिसके पास वो जीवन को सुरक्षित समझता है। इस रिश्ते के अनुभव से बच्चा प्यार जैसी भावना का अहसास करता है। और माँ की बच्चे के प्रति निस्वार्थ प्रेम की अनुभूति हमें यही शिक्षा देती है कि जब हम किसी को दुनिया में लाने की वजह होते है तो उसके प्रति हमारी जिम्मेदारियाँ और ज्यादा बढ़ जाती हैं। कौन सा ऐसा शख्स होगा जो अपनी माँ को प्यार नहीं करता होगा ?
मैंने माँ पर पहले एक स्टोरी आप सभी के साथ शेयर की थी, जो माँ के रिश्ते का एक कड़वा अनुभव थी। पर हर माँ ऐसी नहीं होती है। माँ का प्यार एक ऐसे फूल के समान होता है, जो जहाँ भी खिला होता है, वहाँ का वातावरण शुद्ध व सुगंधमयी कर देता है । कभी कभी जीवन की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हमें अपने परिवार की खुशियों के लिए, उनको अच्छा जीवन देने के लिए अपने माता -पिता से दूर हमें अपने परिवार को साथ लेकर रहना मज़बूरी बन जाती है। पर हमें अपने माता पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को हमेशा याद रखना चाहिए।
जो माता-पिता अपने भोजन के पहले निवाले को अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए हमेशा अपने बच्चे को खिला दिया करते हैं तो क्या हमें भी उनके जीवन के ऐसे मोड़ पर उनके काँपते हाथो को थाम कर उनकी शक्ति बनना नहीं चाहिए। मैं अक्सर देखती व सुनती हूँ कि कई परिवारों की बेटियाँ अपने माता पिता से प्रेम करतीं हैं। और शादी हो जाती है तो वही बेटी की सोच अपने ससुराल के माता पिता के प्रति क्यों बदल जाती है ? ऐसा क्यों होता है ? सोच में इतना परिवर्तन आखिर क्यों आ जाता है ?
शादी के बाद वही बेटियां अपने ससुराल में जाकर, जन्म दिए माता-पिता की तरह सास-ससुर को प्यार व सम्मान नहीं दे पातीं। पर क्या बहु ही इसके लिए जिम्मेदार है ? स्त्री जब बेटी की माँ होती है, तो उसके मन की भावना अलग होती है जब वह सासू -माँ के रिश्ते से जुड़ती है, तो उसके विचारों और सोच में परिवर्तन क्यों आ जाता है ? एक माँ के ही विचार थे, जिन्होने कहा था कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती। सच्ची बात यह है कि बहू तो बेटी कभी बन ही नहीं सकती है, क्योंकि बहू का घर के प्रति बेटी से कही ज्यादा जिम्मेदारियाँ होती हैं, जो उनको निभाने होते हैं। तो अगर वो बेटी बनेगी तो उन जिम्मेदारियों को कैसे कर पायेगी ? फिर उनमें बेटी की तरह नादानियाँ भी होंगी और उनसे गलतियाँ भी होंगी , जो किसी सासू-माँ को अपने बहु से स्वीकार नहीं होंगी।
जब बहू से जाने- अनजाने होने होने वाली गलतियों को हम माफ़ नहीं करते व उनको दुबारा मौका नहीं देना चाहते, तो हमें कोई हक़ नहीं है कि हम यह बात कहें कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती है। अगर किसी की बेटी को बहू बनाकर घर में लेकर आने पर हम उसे बेटी जैसा प्रेम देंगे तो वो खुद-ब-खुद बेटी बन जाएगी। यदि ससुराल के लोग उसे बेटी समझ लेंगे तो फिर उसे बेटी क्यों बनना पड़ेगा ? पर लोग ये नहीं समझ पाते हैं कि हम जो देंगे वही तो हमारे पास लौट कर आएगा। लोग क्यों ये नहीं सोचते कि जो लड़की अपनों को पीछे छोड़ कर आपको अपना बनाने आई है, आपको माता -पिता पुकारती है, क्या उसको अपने जन्म दिए माता - पिता के प्यार को हर कदम पर पाने की चाहत नहीं होती होगी।
उस जगह को भरा तो नहीं जा सकता है, पर उसको भी ये अहसास दिलाया जा सकता है कि "बहू ! जो प्यार मुझे मेरी सासु माँ से नहीं मिला वो मैं तुम्हे दूँगी। " बहू के सामने सभी क्यों अकड़े रहते हैं ? बेटी जब सुबह 8 :00 बजे तक सो कर उठती है तो माँ पूछती है कि चाय बनाऊं बेटी। वही माँ बहू के ५:00 बजे भी उठने के बाद सुनाती हैं कि न जाने कितना आराम करना होता है कि जल्दी नीद ही नहीं खुलती। बेटी को काम करते देखकर माँ का कलेजा मुंह को आ जाता है और बहू बीमार होने पर भी घर के सारे काम को करती रहे। हमें समझने की जरूरत है कि बहू भी किसी की बेटी है।
हमें बेटी की विदाई पर रोना आता है क्योंकि हमें यह पता होता है कि हमने अपनी बहू को प्रेम व सम्मान नहीं दिया है तो हमारी बेटी को उसके ससुराल में कैसे मिलेगा ? यदि बेटी की विदाई को खुशियों भरी हँसी में हम बदलना चाहते हैं तो पहले हमें दूसरों के घरों लाई जाने वाली बेटियों को सम्मान और प्यार देना होगा। इतना प्रेम देना होगा कि उसे उस घर में बाहर से आने का अनुभव न हो। क्योंकि बेटियां तो दूसरों के घरों में आपकी भी हैं , जो बहू बनकर रिश्तों को निभाने की दिन-रात जद्दो-जहद कर रहीं हैं। अपनी बेटी की आँखें कभी नम न हों , इसके लिए अपनी बहू की होठों पर मुस्कुराहट लानी होगी।
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Accha post hai,..keep it up
जवाब देंहटाएंकमेंट के लिए धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंlog sab kuch jante huye bhi sudhrna nahi chahate. shandar post hai.
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