"बाबा ! अगर मैं मर गई, तो इन दहेज़ के लालचियों को सजा जरूर दिलवाना। मेरी लाश को सफ़ेद कफ़न में ओढ़ाना। मैं अब किसी की सुहागन नहीं हूँ। मैं एक विधवा हूँ।"
प्रेमा की लिखी बातें पढ़कर पिता की आँखें नम हो गईं। दिल में बस यही कसक रह गई थी कि काश ! उस रात फोन उठाया होता तो, प्रेमा आज अपने बाबा के साथ होती।
प्रेमा अपने पिता की लाडली बेटी थी,जैसे हर बेटी अपने पिता के जीवन का प्यारा हिस्सा होती है। प्रेमा की माँ का स्वर्गवास तभी हो गया था,जब वह 4 वर्ष की थी। वह अपने पिता से माँ और बाबा दोनों का प्यार पाती थी। प्रेमा के बाबा ने उसे कभी भी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। अब प्रेमा ग्रैजुएट हो गई थी। प्रेमा की शादी की चिंता उसके बाबा को सताने लगी, मगर प्रेमा और पढ़ना चाहती थी। बाबा के कहने पर वो शादी के लिए राजी हो गई । शादी की बात चलते ही, प्रेमा बहुत उदास रहने लगी थी। उसे अपने बाबा की चिंता थी कि उसकी शादी के बाद उनका ख्याल कौन रखेगा ?