मैं कोई राइटर नहीं हूँ और मुझे बहुत बड़ी -बड़ी बातें भी नहीं करनी आती है। मगर इतना मेरे मन में जरूर चलता रहता है कि जब हम निराश होतें हैं या किसी कार्य को नहीं कर पाते है और हमें जब असफलता का सामना करना पड़ता है, तो हमें याद आते है- भगवान ,खुदा या गॉड या हम जिस भी धर्म को मानते है, उस प्रभु की । और हम जुट जाते है, उन तमाम कार्यो में, जैसे कि चादर चढ़ाना,धागे बांधना ,नारियल चढ़ाना, कैंडल जलाना इत्यादि। क्या इन सभी कार्यों को करने से हमें वो सफलता मिल जाती है ? शायद हाँ ,या नहीं भी। मै नास्तिक नहीं हूँ, मगर ईश्वर पर अँधा विश्वास नहीं करती। मै ये नहीं जानती कि ईश्वर होते है या नहीं। मगर कोई शक्ति जरूर होती है ,जो हमारे आस -पास ही रहती है, जिसके द्वारा सृष्टी का संचालन होता है।
हमें अपने कार्यों को करने की जो शक्ति मिलती है, शायद हम उसी शक्ति को पूजते है। मगर क्या वो शक्ति बड़े -बड़े चढ़ावे मांगती है ? लोग मंदिरों,मस्जिदों ,गिरजाघरों में जातें हैं, उसी राह में न जानें कितने जरुरतमंद बैठे रहते है और हम उन्हें अनदेखा करके उन मंदिरों में महँगे-महँगे चढ़ावे चढ़ाते है। मगर जो लोग हाथों को फैलाये हमसे माँगते है, उनका हमें ख्याल नहीं आता। बस यही याद रहता है कि हमारा चढ़ावा जितना बेस्ट होगा , मन्नत उतनी ही जल्दी पूरी होगी।